卍 ऊँ देवीदास जू नमो नमः श्री सांवले नमो नमः| पुरवा अधिपति नमो नमः जय देवी दास जू नमो नमः|| 卍

Monday, March 25, 2019

अर्ज विनती स्त्रोत

🌹अथ अर्ज विनती स्त्रोत कृत समर्थ साहब देवीदास जू🌷🌷
सतगुरु सरन मैं तोरि,
सुनु अर्ज विनती मोरि।
तुम अहौ सिरजन हार,
मैं सुना यहि संसार।
तुम बड़े दीन दयाल,
कियो सबनि का प्रतिपाल।
मैं आयउँ सरन तकाय,
समरस्त कै सुधि पाय।
अब मोहिं आपन जानु,
मोहिं सरन अपनी आनु।
मोहिऔर नाहीं दाँउ,
दै शीस पकरौं पाँउ।
कुछ किये बनी उपाउ,
समरस्त नो तुम राउ।
तुम आहु बंदी छोर,
केहि करौं जाय निहोर।
जस परै तुम कँह जानि,
मैं आयहुँ यह प्रण ठानि।
अस कहौं तुम्है सुनाय,
कस दिहेव मोहि बिसराय।
मैं कीन कौन गुनाह,
जो मिटै नाहि अथाह।
अस कौन दूसर ठाँउ,
जो तहाँ को मैं जाँउ।
अस देहु मोहिं सिखाय,
रहौं तुम्है ना बिसराय।
परतीत पकरहुँ डोरि,
कोउ सकै नाहीं तोरि।
फिरि काहु नाहिं डेराउँ,
कहौँ तोर तब कब आँउ।
जो लेहु ना सुधि मोरि,
तौ किरति करौं न तोरि।
जब आय दरद समाय,
तब जाब कँह बिसराय।
जब कहौं तुमते भेंटि,
तब देहु सब दुख मेटि।
तब किये बनी उपाउ,
जब कहहुँ की बलि जाँउ।
तब चली ना फरफन्द,
तुम आहु मुरति अनंद।
जब लेहुँ तुम्हरै नाउँ,
तब करिहौ कौन उपाउ।
जब रहौं सूरति घेरि,
कहौँ सकल दरद गरेरि।
जब दरद उपजीआनि,
तब कहौँ किरति बखानि।
जस भयो है युग चारि,
तस दरद सुनौ हमारि।
प्रह्लाद ध्रुव की ओर,
तस बनी चितए कोर।
 जस सघन बोहित पार,
कियो जानि जन निस्तार।
जस राखि द्रुपदी लाज, 
किये बनी सुनत अवाज।
जस पैज गज हित कीन,
अस जानि मैं सुधि कीन।
लियो जरत पांडव राखि,
सोइ कहौं आपन भाखि।
सोइ भयउ अवसर मोंहि,
सुधि कीन तब मैं तोहिं।
अब बिरद सकल संभारि,
तौ लेहुँ मोहिं उबारि।
अब थक्यो गुन बल मोर, 
केहि करौं जाय निहोर।
समरस्त तुम अस पाय,
केहि कहौं मैं गोहराय।
समरस्त दीनदयाल,
जन जानि करहु निहाल।
यह नही अपजस थोर, 
जस लेहु बन्दी छोर।
अपजस करै संसार,
तब करिहौ कौन विचार।
अब किहे बनी सनाथ,
मैं दीन चरनन माथ।
समरस्त दाता मोर,
यह दान तुम कँह थोर।
जगजीवन प्रभु दियो ज्ञान,
कियो देवीदास बखान।
जब भयो मन आधीन,
मन कियो बहुत मलीन।
जब कह्यो सरनहिं  आनु,
मोहिं दास आपन जानु।
तब दया सदगुरु कीन्ह,
दियो नाम आपन चीन्ह।
भयों सुमिरि सुमिरि निहाल,
नित कहौं मैं बुधि बाल।
जगजीवन अस गुरु पाय,
भजु देवीदास दृढ़ाय।
यह अरज विनती ज्ञान,
सुनि समुझि लावहु ध्यान।
फिरिअन्त होहु निहाल,
समरस्त दीनदयाल।
दोहा:चरन कमल छूटै नहीँ, लागि रहै दिन राति।
सुख अनंद तिहिं सदा है, ब्याकुल कहु केहि भांति।।
कर्म भर्म का देश यह,भक्ति देहि बिसराय।
सुमिरि नाम सुख बास करि,सतगुरु सरन तकाय।।
नाम सत्य कर्ता पुरुष,जेहि मन अंतर्ध्यान,
भक्ति दाहिनी गुरु कृपा, सोइअस्थिर स्थान।।
चरन शीस दै मैँ कहहुँ,केवल नाम अधार।देविदास सोइ नाम लै,जन सब उतरैँ पार।।
सोरठा:नहि कछु करहु तेवान,सुमिरि सुमिरि वहि नाम का।
करिहँहिं सब औसान, देविदास भजि भजि कहैँ।।
भवजल उतरै पार, सुमिरि सुमिरि जन नाम का।
देविदास अतिबार,भजिहि सो उतरिहि नहिं बृथा।।
दोहा:सतगुरु देवीदास कृत,बानी परम पुनीत।
प्रेम सहित नित पाठ ते,बसै भक्ति हित चीत।।इति;-🌹🌹

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