🌷अथ श्री सत्यनाम अष्टक🌷
🌷सत्यनाम प्रभुख्याय प्रभुर्वे सर्वे साक्षिणे।
समाधिस्थाय देवाय दिव्यरूपायवैनमः।।
सत्यनाम ते आधिकी, होत जौ कौनिउ बात।
तौ गुरूदत्त विशेषि कै, सिखन ताहि ढिग जात।।
सत्यनाम सम और न दूजा।
जेहि कै सन्त करैं नित पूजा।।
सत्यनाम मा तीनि गुन, हैं कृसानु रवि चँद।
जारे कर्म प्रकाश करि ,शीतलता सुखकन्द।।
सत्यनाम जे सुमिरै मन मा।
तिनके दुःख न व्यापै तन मा।।
सुना सत्य सतिनाम का,बड़ा अहै अकबाल,
जेहि के सुमिरन के किहे, निकट न आवत काल।।
सत्यनाम ते सबकुछ होई।
प्रीति लगाय भजै जो कोई।।
सर्व मन्त्र ते अधिक है, सत्य सत्य सतिनाम।
सुमिरहु सुरति सुधारिकै,पावहु सुख विश्राम।।
सत्यनाम की बलि बलि जाई।
गुरु की कृपा नाम रटि लाई।।
तप तीरथ मख दान ते ,जीव जाय सुरलोक।
गुरूदत्त दास सतनाम भजु, जौ मन चहत विशोक।।
निरगुन सरगुन सम करि जानहु।
सत्यनाम सुमिरन प्रण ठानहु।।
सत्यनाम की समिता, दूसर कतहुँ न और।
देखा ज्ञान विचारि कै, जहँ लगि मन की दौर।।
जे सतनाम निरन्तर रटते।
ते भवजाल कबहुँ नहि परते।।
जे सुमिरै सतनाम का,गुरु चरनन धरि माथ।
जन गुरूदत्त विशेषि कै, रहैं राम तेहिं साथ।।
सत्यनाम निश्चय मन जिनके।जन गुरूदत्त चरण परूँ तिनके।।
सत्यनाम एक मंत्र है,सब मन्त्रन सिरताज।
हमरे आजा का दिहिनि,जगजीवन महराज।।
सत्यनाम जो चित मा धरहीं।
भवसागर गो पद सम तरहीं।।
सत्यनाम सबते अधिक, समुझै बिरला कोय।
गुरूदत्त दास जिन समझा, तिन मन राखा गोय।।
सत्यनाम अष्टकमिदं प्रात पठेन्नर यस्य।
जगजीवन कृपया सदा, जगजीवन तस्य।।
🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🚩
No comments:
Post a Comment