🌷साल्हा चतुर्थ चरण:-कृतश्रीसमर्थ साहब गुरुदत्त दास जू(पुरवाधाम)
सवैया:-जे भे दास पवनसुत के,तिनका कहौ काम कहाँ करसै।
अघ औगुन कोटि किए तन जे,करतै गुन गान सबै झरसै।
सुख संपति नाम दयानिधि को,हनुमान अनुग्रह ते सरसैं।
गुरूदत्त कहैं मन ध्यान धरै,तेहि पर बजरंग हाथ परसैं।।(राम)
मन तौ मारे मरतै नाहीं, मन का मोहड़ा बड़ा करेर।
मन तौ मन का लै भरमावै, मन के अहैं अनेगन फेर।
ग्यान गुरु है पासहिंअपने,तेहिते कस न लियहु सल्लाह।
मन मारै कै जुगुति बतैहैं,होई आदि अन्त निर्वाह।
क्षमा केरि जो ढाल बनावै,औ गुरु ग्यान केरि तलवारि।
अपने मन का मारि लियत हैं, तिन्हका लागै भक्ति पियारि।
"र"कहि रण मा कस नहिं पिलहू, वैसेन "म"कहि मन का मारु।
जन गुरुदत्त सुमिरि दुइ अक्षर, सहजहिं माया कटक बिदारु।
तन बासिन्ह कै कहेन लड़ाई, ग्यानिहु मन मा करहु विचार।
सेवहि सन्त नाम रटि लावै, बिनु श्रम भवनिधि उतरै पार।
रामभक्त है बड़ा सिपाही, तिन कर कृष्ण भक्त है भाय।
सेवहिं संत नाम रटि लावै, वह तौ कालहु ते बतलाय।
प्रभु जगजीवन का जस गावौं, मैं तौऔर न जानौं बात।
सब संतन के चरण मनावौं, मन के मिटै सबै उतपात।
सतगुरु बँश देहिं जेहिं सेल्ही,पकरहिं हनूमान तेहि बाँह।
जन गुरुदत्त नाम रटि लावै, तेहि पर द्रवहिं
जानकी नाँह।
प्रभु जगजीवन की सब मर्जी, साल्हा कहिनि शिरोमणि दास।
गावै सुनै प्रीति करि जे कोउ,तेहिकै बढ़ै नाम विश्वास।
सवैया:-जे सीताराम पुकार करैं, तिन ते नित नेह बढ़ावत हौँ।
जे राधा कृष्ण का नाम लियइ,तिनके पद शीष नवावत हौँ।
प्रति श्वांस सदा सत शब्द रटै, तिनक पद पंकज ध्यावत हौँ।
गुरुदत्त के दूसर बात नहीं, जगजीवन के गुण गावत हौँ।(राम)
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