🌷साल्हा त्रृतीय चरण कृत श्री समर्थ साहब "गुरुदत्त दास साहब(पुरवाधाम)🌷
🌷सवैया;-वीर प्रधान अहौ हनुमान, सदै जन के तुम काज सँवारे।
ग्यान ध्यान विवेक विमल फल, चारिलहैं जेहि ओर निहारे।
वेद पुराण बखानत हैं यश सन्तन के प्रिय प्राण अधारे।
जन गुरुदत्त के भीर हरो,अब वास हृदयँ करौ रामदुलारे।।।राम
।।"साल्हा"त्रृतीय चरण।।
पांच पचीस बडे़ परपंची,जिनसे सदा रहेव
हुँशियार।
नाहीं तौ पकरि नरक लै जइहैं, तौ तुम रोइहौ छाँडि डफार।
काम क्रोध का डंका बाजै,आगे लोभ ध्वजा फहराय।
यहि तीनिउ ते भागि बचै जो,तब वह सुमिरै नाम अघाय।
काम क्रोध मद लोभ कसाई,चारिउ जीव केर बटपार।
जौनेक भैय्या मोह कहतहैँ,वह सब पापिन का सरदार।
विमल विचार क्षमा मन आनै,औ संतोष दीनता जान।
तेहिका नृपति विवेक कहावै, अपने हृदयँ नाम निज आन।
मोह के मन्त्री का कहि गावौं, है दुर्बुद्धि सिंह जेहि नांव।
है गुरु ग्यान विवेक कै मन्त्री, जेहिकी बार बार बलि जांव।
मोह की तिरिया का कहि बरनौं,जेहिका कुमति कुँवरि है नांव।
सुमति कुँवरि विवेक कै तिरिया, वह तौ बसै ग्यान के गाँव।
मोह के पूत बड़े उतपाती,जिनके कर्म कहे न जाहिं।
हैं विवेक के पूत सुकर्मी, वै निज नाम भजैं मन माहिं।
काम सिंह का मोह हँकारै,उदभट सुनौ हमारी बात।
यै काशी मा दुइ राजा भे,जल्दी जाइ करौ उतपात।
विमल विवेक विचारहिं टेरै,सांउत सुनौ हमारी बात।
काम केरि करतूति जनावै,मारहुधरि छाती पर लात।
क्रोध सिंह का मोह हँकारै, उदभट सुनौ हमारी बात।
यै काशी मा दुइ राजा भे,जल्दी जाय करौ उतपात।
विमल विवेक क्षमा का टेरै, बीरों सुनौ हमारी बात।
क्रोध केरि करतूत जनावै, येहिके टूरि लियहु तुम दाँत।
लोभ सिंह का मोह हँकारै, उदभट सुनहु हमारी बात।
यै काशी मा दुइ राजा भे,जल्दी जाय करौ उतपात।
विमल विवेक कहै संतोषहिं,अगहर सुनौ हमारी बात।
लोभ केरि करतूति जनावै, मारहु धरि छाती पर लात।
गरब सिंह का मोह हँकारै, उदभट सुनौ हमारी बात।
यै काशी मा दुइ राजा भे,जल्दी जाय करौ उतपात।
विमल विवेक दीनता टेरै, बीरो सुनौ हमारी बात।
गरब केरि करतूत जनावै, यहिकै टूरि लियहु तुम दाँत।
मोह नृपति उठि आपुहि गर्जा,तब नहिं सूझै आपन परार।
तौ विवेक गुरु शब्द संभारा,होइगा दशौ दिशा उँजियार।।।।(राम)
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