🌹दोहा:-साहेब समरथ जगजीवन, स्वतः सनातन विष्णु।
सुभग सुलोचन जगजीवन,सुमुख सुकर पद कृष्ण।।
दोहा:-जगजीवन निर्गुन अलख,निराकार निरधार।
निजानंद निर्दुन्द अज,स्वयं ब्रम्ह अवतार।।🌷🌷
बंदउँ जगजीवन जग तारन।
संशय रुज दुःख दोष विदारन ।।
बंदउँ जगजीवन जगदीशा।
तारन तरन सो विस्वावीसा।।
बंदउँ जक्त प्राण जगजीवन।
मंगल करन अमंगल सीवन।।
बंदउँ जगजीवन दुःख भंजन।
सब विधि जनहि मिटावत रंजन।।
बंदउँ जगजीवन अनमोला।
रचत जमीं असमान अंडोला।।
बंदउँ जगजीवन करतारा।
ब्रम्हा विष्णु रुद्र जिन सारा।।
बंदउँ जगजीवन प्रभु स्वामी।
अलख निरंतर अंतरयामी।।
बंदउँ जगजीवन अवगाहा।
चरित अपार न पावत थाहा।।
बंदउँ प्रणतपाल जगदीशा।
चरणकमल पर वारहुँ शीशा।।
बंदउँ जगजीवन की रचना।
मन कर्म वचन भजसि तेहि कस ना।।
रचिनि ब्रम्ह निर्गुण अरु माया।
रचिनि निरंजन अलख औ काया।
रचिनि भूमि आकाश अपारा।
रचिनि चन्द्र सूरज औ तारा।।
रचिनि पवन पानी औ आगी।
रचिनि कोटि तैंतीस विरागी।।
रचिनि शेष कच्छप बाराहा।
रचिनि वेद चारिउ अवगाहा।
रचिनि भूत औ प्रेत पिसाचा।
रचिनि देवि देवन मत काँचा।।
रचिनि पुराण अष्ट दस शोभा।
रचिनि शाश्त्र षट लखि मन लोभा।।
रचिनि दुःख अरु सुख पुन्नि पापा ।
रचिनि करत सब भाषत आपा।।
रचिनि क्रोध अरु मोह सो कामा।
रचिनि शोक संशय कर यामा।।
रचिनि तपी सन्यासी योगी।
रचिनि विविध षट रस को भोगी।।
रचिनि मूर्खता औ अभिमाना।
रचिनि शारदा वचन प्रधाना।।
रचिनि कपट पाखण्ड अनेका।
रचिनि धर्म अधर्म विवेका।।
रचिनि लक्ष चौरासी योनी।
रचिनि होत अनहोनी होनी।।
रचिनि जाति औ पाँति विचारा।
रचिनि साँझ दिन रात सकारा।
रचिनि छाँह अरु घाम अरामा।
रचिनि शीत गरमी धन धामा।।
रचिनि रत्न भूषण रज सोना।
रचिनि कवीश्वर पँडित होना।।
रचिनि वैद्य ओषधि गुनवाना।
रचिनि रोग धीरज बलवाना।।
रचिनि आदि औ अंत तमाशा।
रचिनि सुगंध विगंध विलासा।।
रचिनि नीक औ जानि बेकारा।
रचिनि वस्तु जग विविध प्रकारा।।
चौदह भुवन लोक त्रै जाना।
रचिनि कृपाल पलक महँ माना।
रचिनि कृपाल पलक महँ माना।।🌹
दोहा;-दीनानाथ दयाल जू,दीनबन्धु जगदीश।
दुखिया दीन नेवाजिये,दीनार्त कोटवाधीश।।🌷🌷
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