कीरती समर्थ साहब अनूपदास जी (पुरवाधाम): समर्थ साहब अनूपदास जी समर्थ साहब देवीदास जी के पुत्र तृतीय पावा साहब देवीदास पुरवाधाम के दिवतीय महंत थे। समस्त सतनाम संप्रदाय के अनुयायी एंव समर्थ साहब अनूपदास जी के समकालीन समस्तथ धार्मावलम्बीा संत महात्माथओ ने श्री अनूपदास जी की भक्ति ज्ञान अजपा जाप और ध्यामन साधना से अंतयत प्रभावित थे। यहा तक की उस समय के सिद्ध संत महात्मा्ओ ने समर्थ साहब अनूपदास जी को विदेह की उपाधि दे दिया था। समर्थ साहब अनूपदास साहब के जिवन की तमाम अलौकिक अदभूत घटनाए है जिनके अध्य न एंव श्रवण से पूर्णतय: यह बात सिद्ध होती है समर्थ साहब जी अनूपदासजी विदेह संत थे। समर्थ साहब अनूपदास जी का जीवन चरित्र पूर्ण रूप से समर्थ सदगुरू की अखण्डद भक्ति थी। सत्य नाम सम्प्र दाय के उच्चे आदर्शौ से परीपूर्ण थें समर्थ साहब देवी दास द्वारा समर्थ साहब अनूप दास जी को दिए गये अखण्डय भक्ति के वरदान के फलस्वेरूप समर्थ साहब अनूप दास जी निरंतर अजपा जाप करते हुए शक्ति की पराकारठा को प्राप्तफ की थी। राग द्वेश देश आंडबर जैसे विकार समर्थ साहब की कृपा मात्र से ही नष्टल हो जाते है तथा उनके दर्शन मात्र से मनुष्य के भीतर भक्ति एंव ज्ञान की दिव्ये ज्योहति प्रजवलित हो जाती है सत्यमनाम सम्प्रथदाय के माहान अवधूत संत श्री समर्थ साहब गुरूदत दास जी ने अपने दोहे मे समर्थ साहब अनूपदास जी की कृपा का उल्लेनख करते हुए लिखा है ।
सतगुरू नाम अनूपका, बाडा अहै परताप।
जिनकी कृपा कटाक्षते अजपा आपुहिं आप।।
एक बार शीतकालीन पूर्णिमा का पर्व चल रहा था भक्तों एवं श्रद्धालुओं का विशाल जन समुह पवित्र पर्व में भाग लेने एंव समर्थ के दर्शनार्थ पूरवाधाम मे आये हुए थे संध्याश के समय धूनी के पास साहब अनूप दास जी भक्तों के साथ बैठे हुए थे स्त्री पुरूष बाल वृद्ध सभी समर्थ साहब का दर्शन एंव सतसंग का आनंद ले रहे थे। भक्तो का आना जाना जारी था मौसम खराब होने की वजह से ठंण्डव भी काफी जोर की थी। अत: कुछ भक्तन घूनी के पास बैठे ताप रहे थे समर्थ साहब अनूपदास जी वही घूनी के पास लेट गये साहब जब लेटे तो उनके दोनों हाथ अलग अलग दिशा मे फैल गये थे समर्थ साहब अनूपदास जी का एक हाथ जलती हुयी धूनी के बीचों बीच अग्नि के उपर था। और दूसरा हाथ पास मे ही बैठी हुयी स्त्री के स्तबन पर टिक गया था। वहा पर उपस्थि त भक्तभ विस्मित हथप्रभ निगाहों से समर्थ साहब अनूप दास जी की लीला को बस देखे जा रहे थे। कुछ लोगो का समझ नही आ रहा था की आखिर समर्थ साहब की ये कौन सी लीला है। समर्थ साहब का हाथ स्त्री के स्त न पर देखते ही उनकी भवना और सोच दोना ही भ्रमित कर देती लेकीन अगले ही क्षण जब दूसरी तरफ देखते की सरकार का दूसरा हाथ जलती हुइ धूनी के बीच रखा हुआ है। लेकीन अग्नि उनको छू तक नही पा रही है तो उनका भ्रम क्षण भर मे ही अपने आप नष्ट हो जाता की जिसके शरीर को साक्षात अग्नि स्प र्श तक नही कर पा रही है। तो भला कामाग्नि की क्यात मजाल जो ऐसे महान सन्तग को छू भी सके। एसी तमाम अध्याोत्मिक कथाओं से सदा से प्रमाणित होता आया है की सारी शक्तियों एंव सिद्धियां भक्ति में ही निहीत है।
ईश्विर का प्रमाण
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