卍 ऊँ देवीदास जू नमो नमः श्री सांवले नमो नमः| पुरवा अधिपति नमो नमः जय देवी दास जू नमो नमः|| 卍

Saturday, March 16, 2019

कीर्ति गाथा 10

         साहब अनूपदास जी द्वारा हर युग में भक्तग और भगवान का हमेशा और हर जगह मौजूद होने की बात कहना और उस बात को प्रमाणीत करना (साक्ष्यक) देना समर्थ साहब अनूप दास जी एक बार कुछ साथी भक्तों  के साथ समर्थ स्वाामी जगजीवन दास के जन्मोपत्साव में दर्शन मेला करके पूरवाधाम के लिए वापस लौट रहे थे। चलते चलते ही भगवत चर्चा करते रहना तो सन्तम पुरूषों का स्वरभाव होता है। समर्थ साहब तो हमेशा ही अजपा जाप मे मगन रहते थे। कभी भक्त‍ प्रहलाद की चर्चा होने लगी एक व्यसक्ति ने कहा वह युग और था। और वह समय भी और था जब भक्त् प्रहलाद जैसे भक्तम हुआ करते थे की उनकी एक पुकार पर भगवान दौडे चले आते थे। आज के जमाने में न तो प्रहलाद जैसे भक्त  हैं और न ही ईश्व र हर जगह मौजूद है उस भ्रमि‍त और शंकित व्यलक्ति की बात सुनकर समर्थ साहब अनूपदास जी ने कहा की भाई एैसा बिल्कूवल नही है। भक्त  और भगवान तो हमेशा साथ साथ रहते है या यू कहे की दानों एकाकार है। एक दूसरे के बिना एक की तो कल्पभना भी नही की जा सकती है ईश्व र तो सचराचर मे व्यादप्तन है। भक्त और भगवान हर युग में रहते है और आज भी है। हॉ हर कोई उतनी सिद्दत से ईश्व्र की भक्ति नही कर पा रहा। लेकिन वह भाई यह बात मानने को तैयार नही था उसकी तो एक ही रट थी की पहले जैसे ना ही भक्तव है न ही उनके जैसे भगवान सब लोग बात करते चल रहे थे तभी एक जगह ईट पकाने वाली भट्टी दिखाई पडी जिसे उस समय आवां कहते थे समर्थ साहब अनूपदास जी ने कहा की आप नही मानते भक्ति और भगवान दोनो पहले की तरह मौजूद है समर्थ साहब अनूपदास जी ने कहा की अच्छाऔ एक बात बताओ वो जो सामने ईट की भट्टी जल रही है अगर मैं इसमे कूद जाउ और जिन्दाा सही सलामत वापस निकल कर आ जाउ तो मानोगो की पहले के जैसे भक्तज और भगवान दोनों ही है। तब उस व्याक्ति ने कहा कि हां अगर एैसा होता है तो मै मानूगा की आज भी भक्तह और भगवान दोनों है। लेकिन आप एैसा मत करना अगर आपको कुछ हो गया तो हम आपके घर वालों को क्यार जवाब देंगे तब अनूपदास साहब ने कहा की तुम उसकी चिन्ताल मत करो क्योबकि भगवान मुझे कुछ होने नही देंगे, और इतना कहकर दौडकर जलती हुए भट्टी मे जाकर कूद गये तभी साहब अनूपदास साहब के आग मे कूदते ही सभी समर्थ साहब के साथ वाले भागने लगे लेकिन तभी अनूपदास साहब उस जलती हुई आग के अंदर से सही सलामत बाहर आ गये आग ने उन्हेप छुआ तक नही और अनूपदास जी इन लोगों को आवाज देते हुए बोले अरे रूक जाओ देखो मैं ठीक हॅु मुझे कुछ नही हुआ है भगवान ने मेरी रक्षा कर मुझे अग्नि में जलने नही दिया लेकिन उन लोगों को ऐसा लगा मानो अनूपदास जी तो जल गये। और अब उनकी आत्माद पीछेसे आवाज दे रही है। और वे लोग और जोर से भागने लगे जब समर्थ साहब अनूप दास जी देखा की जब लोग उनकी आवाज सूनकर रूकने की बाजाए उल्टा  भाग रहे है तो समर्थ साहब अनूपदास जी दौडकर उन भाग रहे लोगों के सामने जाकर खडे हो गये अपने सामने अनूपदास जी को देखकर उनको लगा की अनूपदास जी का भूत उनके सामने खडा है मारे डर के वे लोग बेहोश हो गये तब अनूपदास जी ने उनके उपर पानी छींटा मारा और अंगौछे से हवा की तथा सिर पर हाथ फेरा थोडी देर मे ही उन लोगों को होश आ गया और उन लोगों को अनूपदास साहब को देखकर घोर आश्चहर्य और पूर्ण विश्वानस होगया और उन्हो नें समर्थ साहब अनूपदास के पैर पकड लिए और कहा सरकार आप सही कहते है। हमे विश्वानस हो गया की आज भी प्रहलाद जैसे भक्ता भी है और भगवान भी
कीरति समर्थ साहब अनूपदास जू (द्वितीय गद्दीधर महन्थ  श्री पुरवाधाम)

No comments:

Post a Comment