卍 ऊँ देवीदास जू नमो नमः श्री सांवले नमो नमः| पुरवा अधिपति नमो नमः जय देवी दास जू नमो नमः|| 卍

Friday, March 15, 2019

कीर्ति गाथा 6

         समर्थ स्वाुमी जगजीवन साहेब द्वारा समर्थ साहेब देवीदास जी को मनवांछित वरदान मांगने के लि‍ए कहना एकबार समर्थ स्वा मी जगजीवन साहेब अपनी तपो स्थदली श्री कोटवाधाम में विराजमान थे। और समर्थ साहेब देवी दास जी उनके श्री चरणों मे ध्याथन लागाए नाम सुमिरन कर रहें थें। तभी स्वाेमी जी ने देवीदास जी से कहा ‘सावले’ (स्वाममी जी देवीसदास जी को प्यावर से सांवले कहते थें) आज हमारी इच्छार है कि‍ तुम हमसे कोई मनचाहा वरदान मांगो। तब समर्थ साहेब देवीदास जी ने बडे ही सरल और विनम्र भाव से हाथ जोडकर कहा नाथ आपने तो हमें अपना बनाकर बिना मांगे ही सबकुछ दे दिया है, अब मैं आपसे और क्याम मांगू, स्वासमी जी ने कहा कि अब जब मैने कह दिया है तो तुम्हेंा लेना ही पडेगा, ऐसी मेरी इच्छाग है। अन्तीत: समर्थ देवीदास जी वरदान मांगने के लिए राजी हो गये। और बडे ही विनीत भाव से स्वाममी जे से कहा प्रभू आप तो अन्तलर्यामी हैं अपने भक्तन पर सदा ही करूणा करते है सो हे नाथ मुझपर भी करूणा कीजि‍ए, इतना करहकर देवीदास साहेब ने एक बहुत ही सारगर्भित चौपाई कही
’देवीदास कहैं सुनौ रघराया’’
‘’खर्चा खंगै न बटुरै माया’’ ।।
स्वादमी जी देवीदास साहब की रहस्यर मयी चौपाई सुनकर बडे प्रसन्नग हुए और कहा‍ कि मैं तुम्हाारे भक्ति भाव को समझता हॅू आज से माया ठगिनी का तुम पर कोई असर नहीं होगा अपितु वह आपके वसीभूत रहेगी
(समर्थ स्वाअमी जगजीवन दास का पुनर्अवतार)

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