एक बार देवीदास जी के पास एक सिद्ध मुसलमान फकीर आए और बोले है कि मैने सुना कि आप सिद्ध महात्माी है इसलिये मैं आप से कुछ पूछना चाहता हॅू। यह सुनकर देवीदास जी ने कहा कि मैं गृहस्थि हॅू सिद्ध होना बडा कठिन कार्य है परन्तुस स्वारमी जी का दास होने के नाते उनाके प्रताप से जो कुछ भी मालूम होगा अवश्य् बताऊॅगा। तब फकीर ने पूछा कि यह बताइये कि दिल्ली् के दक्षिणी दरवाजे पर इस समय कौन बैठा है और क्याा लिये हैं। देवीदास जी ने कहा कि एक सब्जीम बेचने वाली एक टोकरे में आठ कद्दू लिये बैठी हैं। यह सुनकर फकीर ने ऑखे बन्द् की और थोडी देर बाद कहा कि यह सच हैं परन्तुं अब बताईये कि वे कद्दू बिक गये या नही। औ बिक गया तो कहॉ कहॉ गया। तब देवीदास जी बोले कि सात बिके हैं जिनमें से एक सेठ ले गया है दूसरा एक मिया साहब और इसी तरह शेष कद्दूओं के विषय में बता दिया। परन्तुै एक कद्दू नही बिका हैं और फकीर साहब ने फिर ऑखे बन्द कर ध्यानन में देखा तब बोले कि यह भी सच है। तब देवीदास जी ने कहा कि अब आप बताइये कि जो कद्दू नहीं बिका था वह अब कहॉ है, फकीर ने ध्याजन में देखा तो वो कद्दू उस सब्जीन वाली के पास नही था और पूरी दिल्ली में भी कही दिखाई नही दिया। तब फकीर ने कहा कि मुझे ढूढने से भी नही मिल रहा है कि कहॉ गया। दिल्ली में तो है नही और पूरी दुनिया में देखने की ताकत मुझ में नही। तब देवीदास जी ने कहा कि उस सब्जी बेचने वाली से पूछो। कुछ समय बाद फकीर ने कहा उस सब्जीे बेचने वाली से पूछा था उसने कहा कि सात कद्दू तो पहले ही बिक गये थे एक बचा हुआ कद्दू एक साधू खरीद कर ले गये जिनके माथे पर सीधा तिलक, हाथ पांव में धागा बांधे हुए थे। मैने उनको नया साधू जानकर नाम पूछा था तो उन्होएने अपना नाम देवीदास बताया। परन्तुे आप मेरे सामने यही मौजूद है तो वहॉ पर कौन देवीदास कद्दू खरीद ले गया। यह सुनकर देवी जी ने अपने जॉघ के नीचे से वही कद्दू निकाल कर दिया जिसे देखकर वह फकीर बहुत आश्चॉर्य चकित हो गया और उनके चरणों पर गिर कर बोला कि जैसा आप के बारे में सुना था उससे ज्या दा देखा और प्रसन्नक होकर चला गया।
No comments:
Post a Comment