एक बार एक समुद्री जहाज यात्रियों को लेकर अपने समुद्री सफर पर चला जा रहा था कि अचानक आये भयानक तुफान के कारण जहाज डूबने लगा। अफरातफरी मच गयी, यात्री भयभीत होकर रोने चिल्लारने लगे। हर हर किसी को यही लग रहा था कि अब हममे से कोई भी शायद जिन्दार नही बचेगा। फिर भी लोग एक दूसरे को तसल्लीह देकर समझाने की कोशिश कर रहे थे हर कोई ईश्व र से प्रार्थना कर रहा था उसी बीच दुर्भाग्यकवश एक और अनहोनी हो गयी, जहाज का इंजन खाराब हो गया जहाज चालक एवं कर्मचारियों की तमाम कोशिश के बाद भी जहाज का इंजन सही नही हो रहा था लोग प्रतिपल मौत को अपनी तरफ बढते महसूस कर हरे थे। हर कोई मौत के भय से भयभीत था। लोग कहतें है कि जब जिन्दसगी में कोइ सहारा नजर नही आता तब लोग सिर्फ और सिर्फ ईश्वैर पर सहारा करते हैा और तभी जहाज चालक ने समर्थ साहब देवीदास साहब को याद करके प्रार्थना किया कि सत्यऔ के साहब देवीदाससाहब अब आपही मेरे जहाज को डूबने से बचाइए। इतने सारे लोगो की जिन्ददगी अब आपके हाथ में है त्राहिमाम देवीदास साहेब त्राहिमाम्। मैने आपकी बडी कीरति सुनी है लोगो से आपकी तमाम यश गाथा सुनी है प्रभू अब आपके ही सहारे है। मैने आपका दर्शन तो नही किया पर आपका बहुत नाम सुना है प्रभु मै आपका दर्शन करने जरूर ऑउगा। आप मेरे जहाज की रक्षा किजीये जिस समय जहाज चालक ने समर्थ साहब देवीदास को आवाज दी उस समय साहब का खिदमतगार साहब की सेवा कर रहा था। अचानक खिदमतगार ने देखा कि समर्थ साहब देवीदास साहब का पूरा शरीर भीग गया है और पीठ में से जगह जगह से खून बहने लगा । ऐसा देखकर खिदमतगार भी डर गया, उसने सोंचा कही मेरा नाखून तो नही लग गया जिसके कारण साहबके शरीर से खून बह रहा हो किन्तू शरीर के घाव असाधारण थे जैसे कोई चीज अन्दूर तक घुस गयी हो घाव काफी गहरे दिख रहे थे। मारे डर के खिदमतगार का बुरा हाल हो रहा था उसने साहब को आवाजदी लेकिन साहब तो कुछ बोले ही नही काफी देर बाद जब समर्थ साहब सामान्यल अवस्था में आए तो खिदमतगार ने रोते रोते सारी बात बताई। तब साहब ने कहा कि अंगौछे से पीठ साफ करके तेल लगा दो, खिदमतगार ने वैसाही किया। थोडे दिन में सब घाव भी ठीक होने लगे उधर वह डूबता हुआ जहाज किनारे आ चुका था सभी लोग बहुत खुशी से अपने घर गये। जहाज चालक ने अपने घर पहॅुच कर सारा वृतान्त घर वालों को सुनाया और कहा कि अब मैं जैसे भी हो समर्थ साहब के दर्शन करने जरूर जॉउगा और अगले ही दिन साहेब के दर्शनार्थ निकल पडे, पूछते पूछते समर्थ साहब देवीदास जी के स्थाशन पुरवाधाम पहॅुच गये और लोगों से साहब के बारे में पुछा और आपबीती सुनाई। गॉव के एक लोग उनको साहब के घर तक लाए और कहा यही है देवी दास साहब का घर आप जाकर दर्शन कर लें। जब जहाज चालक अन्दकर गया उस समय समर्थ साहब देवीदास जी अपने बच्चे को गोद में लेकर उसे खेला रहे थे ( दुलार कर रहे थे) जहाज चालक ने कहा कि मैं जिस जहाज को चला रहा था वह समुद्र में डूब रहा था तो मैने मनौती की थी कि देवीदास साहब आप मेरी जहाज को डूबने से बचालो, मै आपका दर्शन करूंगा और भेंट चढाउंगा सो इसीलिए मैं उनके दर्शन के लिए आया हॅू, तो देवीदास साहब ने उन्हेच प्रेम से बैठाकर जलपान कराया और विश्राम करने के लिए कहा तो उन्होबने (जहाज चालक) ने कहा आप मुझे देवीदास साहब के दर्शन करा दीजिए मैं उनके दर्शन का प्याेसा हॅू बडी लालसा है साहब के दर्शन की तब समर्थ साहब ने कहा कि मैं ही देवी दास हॅू तब तो जहाज चालक भ्रमित होकर असमंजस में पड गया और (सोचने लगा कि मैं शायद किसी और के पास आ गया हॅू। ये तो एक साधारण पुरूष है इनकी तो भेष भूषा भी साधू महात्माा जैसी नही है। ये तो देवीदास साहब तो नही हो सकते जिन्होतने मेरा जहाज डूबने से बचाया है। फिर भी मन मे सोचा कि यहॉ तक आया हॅू मुझे खिलाया पिलाया और खुद को देवीदास साहब बता रहे हैं तो इन्हें कुछ मुद्रांए देकर चला जाउॅगा। और जब असली वाले देवीदास साहब मिलेंगे तो उनके दर्शन कर अपनी मनौती पूरा करूंगा ऐसा सोचकर जहाज चालक ने साहब को प्रणाम किया और २१ (इक्कीऐस) मुद्राऐं निकाल कर साहब को भेंट करने लगा जब समर्थ साहब देवी दास साहब ने कहा क्योंऐ भाई जब तुम्हाुरा जहाज डूब रहा था तब तो तुमने कहा था कि मैं १५१ (एक सो इक्यातवन) मुद्रांए चढाउॅगा और अब इक्कीतस मुद्राएं भेंटकर रहे हो तुम्हाहरे मन में शंका है कि भला ये मेरी जहाज को कैसे बचा सकते है तो ले देख तेरी जहाज के कीलों के घावों के निशान अभी भी मेरी पीठ पर हैं जो जहाज खींचते हुए मेरी पीठ पर लगे थे। इतना कहकर समर्थ साहब देवीदास जी ने अपनी पीठ पर से अंगौछा हटाया तो सारे निशान दिखने लगे और समर्थ साहब ने उसी अपने अंगौछे को जोर जोर से झटकना शुरू किया तो देखते ही देखते बस पैसो का अंबार लग गया जहाज चालक तो बेचारे बेहोस हो गये। फिर साहब ने उनके उपर श्री अभरन सागर का जल छिडकर सिर पर स्नेहह से हाथ फेरा तब जाकर जहाज चालक की चेतना वापस आयी। समर्थ साहब ने कहा तुम्हेह जितना धन चाहिए ढेर मे से लेलो मुझे तो बस तुम्हाथरी शंका और भ्रम दूर करना था। जहाज चालक ने समर्थ साहब के चरण पकड लिए और रोते हुए कहा प्रभू मैं अज्ञान आपको पहचान नही पाया मुझे क्षमा कर दीजिए। साहब आपकी कृपा से मेरी अज्ञानता और मेरा भ्रम सब मिट गया है आप मुझे अपनी शरण में लगाकर मुझे कृतार्थ कीजिए। समर्थ साहब उसका पश्च ताप देख कर द्रवित हुए तथा उसे क्षमाकर सदा के लिए अपना बना लिया जहाज चालक समर्थ साहब की कृपा पाकर धन्य हो गया तथा जीवन पर्यंन्ति समर्थ साहब द्वारा बताये गये सतनाम महामन्त्र का सुमिरन करते हुए सदगुरू की भक्ति और कृपा के पात्र बने रहे।Thursday, March 14, 2019
कीर्ति गाथा 3
एक बार एक समुद्री जहाज यात्रियों को लेकर अपने समुद्री सफर पर चला जा रहा था कि अचानक आये भयानक तुफान के कारण जहाज डूबने लगा। अफरातफरी मच गयी, यात्री भयभीत होकर रोने चिल्लारने लगे। हर हर किसी को यही लग रहा था कि अब हममे से कोई भी शायद जिन्दार नही बचेगा। फिर भी लोग एक दूसरे को तसल्लीह देकर समझाने की कोशिश कर रहे थे हर कोई ईश्व र से प्रार्थना कर रहा था उसी बीच दुर्भाग्यकवश एक और अनहोनी हो गयी, जहाज का इंजन खाराब हो गया जहाज चालक एवं कर्मचारियों की तमाम कोशिश के बाद भी जहाज का इंजन सही नही हो रहा था लोग प्रतिपल मौत को अपनी तरफ बढते महसूस कर हरे थे। हर कोई मौत के भय से भयभीत था। लोग कहतें है कि जब जिन्दसगी में कोइ सहारा नजर नही आता तब लोग सिर्फ और सिर्फ ईश्वैर पर सहारा करते हैा और तभी जहाज चालक ने समर्थ साहब देवीदास साहब को याद करके प्रार्थना किया कि सत्यऔ के साहब देवीदाससाहब अब आपही मेरे जहाज को डूबने से बचाइए। इतने सारे लोगो की जिन्ददगी अब आपके हाथ में है त्राहिमाम देवीदास साहेब त्राहिमाम्। मैने आपकी बडी कीरति सुनी है लोगो से आपकी तमाम यश गाथा सुनी है प्रभू अब आपके ही सहारे है। मैने आपका दर्शन तो नही किया पर आपका बहुत नाम सुना है प्रभु मै आपका दर्शन करने जरूर ऑउगा। आप मेरे जहाज की रक्षा किजीये जिस समय जहाज चालक ने समर्थ साहब देवीदास को आवाज दी उस समय साहब का खिदमतगार साहब की सेवा कर रहा था। अचानक खिदमतगार ने देखा कि समर्थ साहब देवीदास साहब का पूरा शरीर भीग गया है और पीठ में से जगह जगह से खून बहने लगा । ऐसा देखकर खिदमतगार भी डर गया, उसने सोंचा कही मेरा नाखून तो नही लग गया जिसके कारण साहबके शरीर से खून बह रहा हो किन्तू शरीर के घाव असाधारण थे जैसे कोई चीज अन्दूर तक घुस गयी हो घाव काफी गहरे दिख रहे थे। मारे डर के खिदमतगार का बुरा हाल हो रहा था उसने साहब को आवाजदी लेकिन साहब तो कुछ बोले ही नही काफी देर बाद जब समर्थ साहब सामान्यल अवस्था में आए तो खिदमतगार ने रोते रोते सारी बात बताई। तब साहब ने कहा कि अंगौछे से पीठ साफ करके तेल लगा दो, खिदमतगार ने वैसाही किया। थोडे दिन में सब घाव भी ठीक होने लगे उधर वह डूबता हुआ जहाज किनारे आ चुका था सभी लोग बहुत खुशी से अपने घर गये। जहाज चालक ने अपने घर पहॅुच कर सारा वृतान्त घर वालों को सुनाया और कहा कि अब मैं जैसे भी हो समर्थ साहब के दर्शन करने जरूर जॉउगा और अगले ही दिन साहेब के दर्शनार्थ निकल पडे, पूछते पूछते समर्थ साहब देवीदास जी के स्थाशन पुरवाधाम पहॅुच गये और लोगों से साहब के बारे में पुछा और आपबीती सुनाई। गॉव के एक लोग उनको साहब के घर तक लाए और कहा यही है देवी दास साहब का घर आप जाकर दर्शन कर लें। जब जहाज चालक अन्दकर गया उस समय समर्थ साहब देवीदास जी अपने बच्चे को गोद में लेकर उसे खेला रहे थे ( दुलार कर रहे थे) जहाज चालक ने कहा कि मैं जिस जहाज को चला रहा था वह समुद्र में डूब रहा था तो मैने मनौती की थी कि देवीदास साहब आप मेरी जहाज को डूबने से बचालो, मै आपका दर्शन करूंगा और भेंट चढाउंगा सो इसीलिए मैं उनके दर्शन के लिए आया हॅू, तो देवीदास साहब ने उन्हेच प्रेम से बैठाकर जलपान कराया और विश्राम करने के लिए कहा तो उन्होबने (जहाज चालक) ने कहा आप मुझे देवीदास साहब के दर्शन करा दीजिए मैं उनके दर्शन का प्याेसा हॅू बडी लालसा है साहब के दर्शन की तब समर्थ साहब ने कहा कि मैं ही देवी दास हॅू तब तो जहाज चालक भ्रमित होकर असमंजस में पड गया और (सोचने लगा कि मैं शायद किसी और के पास आ गया हॅू। ये तो एक साधारण पुरूष है इनकी तो भेष भूषा भी साधू महात्माा जैसी नही है। ये तो देवीदास साहब तो नही हो सकते जिन्होतने मेरा जहाज डूबने से बचाया है। फिर भी मन मे सोचा कि यहॉ तक आया हॅू मुझे खिलाया पिलाया और खुद को देवीदास साहब बता रहे हैं तो इन्हें कुछ मुद्रांए देकर चला जाउॅगा। और जब असली वाले देवीदास साहब मिलेंगे तो उनके दर्शन कर अपनी मनौती पूरा करूंगा ऐसा सोचकर जहाज चालक ने साहब को प्रणाम किया और २१ (इक्कीऐस) मुद्राऐं निकाल कर साहब को भेंट करने लगा जब समर्थ साहब देवी दास साहब ने कहा क्योंऐ भाई जब तुम्हाुरा जहाज डूब रहा था तब तो तुमने कहा था कि मैं १५१ (एक सो इक्यातवन) मुद्रांए चढाउॅगा और अब इक्कीतस मुद्राएं भेंटकर रहे हो तुम्हाहरे मन में शंका है कि भला ये मेरी जहाज को कैसे बचा सकते है तो ले देख तेरी जहाज के कीलों के घावों के निशान अभी भी मेरी पीठ पर हैं जो जहाज खींचते हुए मेरी पीठ पर लगे थे। इतना कहकर समर्थ साहब देवीदास जी ने अपनी पीठ पर से अंगौछा हटाया तो सारे निशान दिखने लगे और समर्थ साहब ने उसी अपने अंगौछे को जोर जोर से झटकना शुरू किया तो देखते ही देखते बस पैसो का अंबार लग गया जहाज चालक तो बेचारे बेहोस हो गये। फिर साहब ने उनके उपर श्री अभरन सागर का जल छिडकर सिर पर स्नेहह से हाथ फेरा तब जाकर जहाज चालक की चेतना वापस आयी। समर्थ साहब ने कहा तुम्हेह जितना धन चाहिए ढेर मे से लेलो मुझे तो बस तुम्हाथरी शंका और भ्रम दूर करना था। जहाज चालक ने समर्थ साहब के चरण पकड लिए और रोते हुए कहा प्रभू मैं अज्ञान आपको पहचान नही पाया मुझे क्षमा कर दीजिए। साहब आपकी कृपा से मेरी अज्ञानता और मेरा भ्रम सब मिट गया है आप मुझे अपनी शरण में लगाकर मुझे कृतार्थ कीजिए। समर्थ साहब उसका पश्च ताप देख कर द्रवित हुए तथा उसे क्षमाकर सदा के लिए अपना बना लिया जहाज चालक समर्थ साहब की कृपा पाकर धन्य हो गया तथा जीवन पर्यंन्ति समर्थ साहब द्वारा बताये गये सतनाम महामन्त्र का सुमिरन करते हुए सदगुरू की भक्ति और कृपा के पात्र बने रहे।
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