卍 ऊँ देवीदास जू नमो नमः श्री सांवले नमो नमः| पुरवा अधिपति नमो नमः जय देवी दास जू नमो नमः|| 卍

Saturday, March 16, 2019

कीर्ति गाथा 26

          साहब सहॉय दास की कृपा से एक भक्तन को रास्तेत में सत्यउनामी धागा एवं प्रसाद मिलना- सत्यकनाम सम्प्रयदाय मे नाम स्मतरण एंव गुरूपद पंकज सेवा ही भक्ति एवं भगवत प्राप्ति का मूल आधार माना गया है सम्प्र दाय के समस्तत समर्थ साहबानो ने हमेशा अपने भक्तो  और शिष्यों  एवं समाज के समग्र जन मानस के कल्यानणार्थ ही किसी भी परंम्पतरा रीति रिवाज का प्रचलन किया उन्हीज प्रेम एवं भावपूर्ण प्रथा में एक प्रथा यह भी है कि कोई भी सत्यरनामी संत महन्थन जब किसी यात्रा अथवा प्रवास के लिए निकलते है तो यथा संभव उस र्माग में जितने भी प्रेमी भक्त  एवं शिष्यव रहते हैं समर्थ साहेब वहॉ पहॅुच कर दर्शनदेते है तथा भक्तोंे के कष्टों एवं परेशानियों का निवारण करते आए हैं इसी क्रममें तृतीय पावा के पंचम गद्दीधर महन्थक समर्थ साहब श्री साहब सहॉय दासजी कोटवा दरबार से दर्शन करके वापस आते समय चौदह गद्दी मे प्रसिद्ध संत समर्थ कायम दास साहब (रसूलपुर) के निकट स्थित असरफपुर में रात्रि विश्राम के लिए रूके आस पास के गांव के लोंगो को जब समर्थ साहब सहॉय दास जी के आगमन की सूचना मिली तो तमाम भक्त  साहब के दर्शनार्थ इकठ्ठा हुए रात्रि में भजन कीर्तन के बाद प्रसाद गृहण कर अपने अपने घर गये प्रात: होते ही पुन: दर्शनार्थियों की भीड लग गयी क्यो कि साहब आज पुरवाधाम के लिए जल्दी् ही प्रस्था न करना चाहते थे चलने के समय एक भक्तअ ने साहब के साथ पुरवाधाम जाने की प्रार्थना की साहब ने कहा  हॉ हॉ चलो तभी मामा साहेब (समर्थ साहब सहाय दास साहब के साले साहब) ने न जाने क्यों  उस भक्तस को साथ चलने से मना कर दिया, जबकि उस भक्त  ने बार बार प्रार्थना किया कि मुझे भी अपने साथ चलने दीजिए दरबार जाकर साहब की समाधि एवं गुरू माता का दर्शन कर लॅूगा और थोडा दरबार की सेवा भी कर लूगा लेकिन साहब के बार बार कहने पर भी मामा साहब उस भक्तर को साथ ले जाने के लिए तैयार नही हुए अंत में साहब ने कहा कि अच्छास रहने दो, सुखदेव भैयया की बात मान लो, उस भक्तह ने साहब का सामान उठा लिया और बोला ठीक है साहब थोडी दूर तक आपके साथ ले चलिए फिर आपको विदा करके वापस आ जाऊॅगा मामा साहब भी इस बात से सहमत हो गये। वह भक्त  अपने गॉव से दुसरे गॉव तक साहब के साथ गया तो साहब ने कहा अच्छाफ अब तुम यहॉ से अपने घर लौट जाओ, तब उस भक्तब ने रोते हुए साहब का सामान बैलगाडी में रख‍ दिया और फफक-फफक कर रोने लगा तब समर्थ साहब ने कहा कि तुम रोओ मत घर जाओ साहब तुम्हेंय दर्शन का फल अवश्यर देंगें। भक्तम ने साहब को बन्दमगी बजाई और घर के लिए वापस लौट पडा अभी थोडी दूर चला होगा कि साहब की कृपा से उस भक्त  को रास्तेई में एक पत्त ल के दोनें में भभूति प्रसाद एव सत्यबनामी धागा रखा हुआ मिला भक्त् ने प्रसाद लिया और घर जाकर घर वालों को भी दिया और साहब की महिमा सबको बताई । एवं अगली पूर्णमाशी को जब वह भक्ता पुरवा दरबार दर्शन करने गया तो साहब ने कहा आ गये भक्तण राज हमने तुमसे कहा था न कि साहब भक्तों  की इच्छा  अवश्य  पूरी करते है तुम्हेा उस दिन प्रसाद भी मिल गया और आज दर्शन भी मिल गया।

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