समर्थ साहब सहॉय दास जी समर्थ साहब देवीदास साहब के पौत्र एवं समर्थ साहब बख्शद दास साहब के पुत्र थे। आपके बारे में कहा जाता है कि बाल्यमकाल से ही अपका लगाव भक्ति भाव से था बचपन में ही आप इश्वेरीय भक्ति से ओत-प्रोत थे। आपके पिताजी ने आपका नाम गांव के प्राथमिक विद्ययालय में लिखवा दिया और पढने के लिए स्कूपल भेजा तो जब अध्यावपक कक्षा में बच्चोंा को पढाने के लिए आये तो देखा कि साहब सहाय दास जी अपनी तखती पर राम राम लिखे हुए थे। तब अध्याखपक जी उसको (साहब सहॉय द्वारा जो राम राम लिखा गया था) मिटाकर हिन्दीा वर्णमाला के अक्षर लिखकर बोले कि अब इसी तरह से तुम और लिखों फिर भी साहब सहॉय दास जी ने तख्तीक पर राम राम ही लिखा अध्याोपक जी के बार बार समझाने पर भी साहब सहॉय दास जी ने राम राम के सिवाय और कुछ नहीं लिखा तो मास्टरर जी ने तख्तीन छीनकर अपने पास रख ली परन्तुअ साहब सॅहाय दास जी फिर भी जमीन पर राम राम लिखने लगे । और हर रोज वही सबकुछ होते देख मास्टीर जी ने साहब सहॉय दास जी के घर आकर घर वालों से बात की और कहा कि साहब इनको पढाना मेरे बस की बात नही हैं आप इनके घर पर ही कुछ पढाने और सिखाने की कोशिश करें तो साहब सॅहाय दास जी के पिता जी समर्थ साहब बख्शि दास साहब ने कहा कि ठीक है अब जब रामजी की इच्छा होगी ये तभी पढ लेंगे और उसी दिन से साहब सॅहाय दास जी का स्कू ल जाना बन्दर हो गया। साहब सॅहाय दास जी जहॉ बैठते वहॉ राम राम कहते और लिखते रहते थे। कहा जाता है कि जब आपको पुरवाधाम का पंचम गद्दीधर महन्तर बनाया गया तो समर्थ साहब ने कहा मैंने अभी तक कुछ भी पढा लिखा नहीं परन्तुा अब लगता है थोडा बहुत पढना पडेगा। तब सबने कहा कि अब आप कौन से स्कूाल में पढने जाओगे तब समर्थ साहब सॅहाय दास साहब ने कहा कि सभी लोग शुरू शुरू में प्राथमिक शिक्षा अपने माता पिता से ग्रहण करते हैं अत: मैं अपने घर पर ही सारी शिक्षा ग्रहण करूंगा। लोगो के बहुत पूछने पर आपने कहा कि हम समर्थ साहब गुरूदत्तपदास जी से सब कुछ पढ लेंगे समर्थ साहब की यह बात सुनकर वहॉ पर उपस्थित सभी लोग अवाक और सन्नल हो गये किसी से कुछ कहते न बन पड रहा था। क्योंअकि सबको पता था कि श्री समर्थ गुरूदत्तय दास जी का सतधाम हो चुका था (समाधिस्थक हो चले थे) अत: लोंगो की व्यतथा और व्याोकुलता को समझकर समर्थ साहब सॅहायदास जी ने कहा कि आप व्य र्थ में ही परेशान न हो मैं तो बस कुछ समय समर्थ साहब गुरूदत्तप दास जी के पास बैठकर पढूंगा और पढाई पूरी होते ही वापस आप सबके पास आ जाउंगा। समर्थ साहब ने कहा कि आप लोग मुझे मेरे साहब जी की समाधि में बैठने के बाद आप लोग बाहर से दरवाजा बन्दो कर उसमें ताला लगा दो और एक सप्ताेह के बाद दरवाजा खोल देना बींच में हमारी पढाई में कोई दखल न दे। लोगों ने वैसा ही किया एक सप्तााह तक समर्थ साहब सहॉयदास जी जब समाधि से बाहर निकले तो लोगो की खुशी का ठिकाना न रहा समर्थ साहबकी जय जयकार होने लगी और समर्थ साहब सहॉय दास जी एक सप्तासह में ही हिन्दीह संस्कृेत उर्दू, फारसी, अग्रेंजी जैसी तमाम भाषाओं के प्रकाण्डे विद्वान बन गये थे। आपके चेहरेसे अपूर्व और अद्वितीय तेज झलक रहा था। समर्थ साहब सहॉय दास जी को अनुभव ग्या्न की प्राप्ति हो गयी थी।
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