卍 ऊँ देवीदास जू नमो नमः श्री सांवले नमो नमः| पुरवा अधिपति नमो नमः जय देवी दास जू नमो नमः|| 卍

Saturday, March 16, 2019

कीर्ति गाथा 22

       समर्थ साहब द्वारा एक आल्हास के शौकीन भक्तर के लिए आल्हा् की तर्ज पर साल्हा  नामक ग्रन्थद की रचना करना :-
समर्थ साहब गुरूदत्तक दास साहब की कीरति एवं लीला साधारण व्य्क्ति के समझ से सवर्था परे है। आप सत्य नाम सम्प्र दाय के महान संत एवं सिद्ध पुरूष होने के साथ- साथ बहुत बडे कवि थे आपके बारे में कहा जाता है कि साहब गुरूदत्‍त दास जी साधारण बात चीत एवं बोल चाल में भी अधिकतर पद्यवत (पधपूर्ण वार्ता) करते थे। समर्थ साहब गुरूदत्तल दास साहब की अधिकाश वार्ता पघरौली में ही होती थी। आपकी वाणी एवं समस्तू कृतियों को यदि संकलित किया जाता तो उसको अथाह ग्रन्थण सागर तैयार हो जाता यद्पि‍ समर्थ साहब की समस्तथ कृतियों को संग्रहीत करना असंभव ही नहीं अपितु कल्पतना से भी परे था। फिर भी समर्थ साहब के कुछ प्रेमी भक्तव जिनको समर्थ साहब के साथ रहने का अधिक समय सानि‍ध्यथ प्राप्तप हुआ उन्होिने समर्थ साहब की बाणी को संकलित किया, जिनमें श्री महावीर प्रसाद जी एवं श्री लक्ष्मीे नारायण जी का नाम प्रमुख है। और समर्थ साहब की वाणियों व कृतियों के जो संग्रह दोहावली, शब्दाावली, साल्हाी, कोटवाधाम महातम जैसे अनगिनत ग्रन्थि हम सभी भक्तोंव के लिए समर्थ साहब के आशिर्वाद सभी अमृत के समान है जिनके एक एक शब्द समाज के समस्तम जन मानस के लिए अनमोल रत्न  की तरह है। समर्थ साहब गुरूदत्तत दास जी के एक भक्ता थे जो आल्हाा गाने एवं सुनने के बडे ही शौकीन थे। एक बार समर्थ गुरूदत्तन दास जी ने उनसे कहा कि तुम आल्हा  न गाया करो तब उन्होमने कहा आल्हाज मेरे तन मन मे कुछ इस तरह रच बस गया है। कि जब तक मैं आल्हाह गा नही लेता हॅू तब तक मैं खुद को अकेला महसूस करता हॅू तथा मुझे कुछ अच्छार भी नहीं लगता है। तब समर्थ साहब ने कहा अगर तुम्हेंॅ आल्हा  इतना अच्छां लगता है। तो मैं तुमको साल्हा  बता देता हॅू तुम उसे गाया करो। जो यथार्थ से परिपूर्ण है तथा भक्तिमय है। एवं साल्हा  को गाने और सुनने वाले दोनों का ही कल्यारण होगा तथा भक्ति का मार्ग भी प्रसस्त  होगा और समर्थ साहब गुरूदत्त  दास जी ने वही पर साल्हाि नामक ग्रन्थ  की रचना की जिसे। साहब के भक्तर ने उसी समय लिख लिया एंव संजोकर रखा जिसे आज भक्ति गाकर एवं सुनकर आनन्दित होते है। साल्हार ग्रन्थ् में साहब ने मनुष्यऔ के आन्तिरिक विकारों और उनकी लडाई का वर्णन किया तथा उनसे बचने के लिए अन्ति: करण में विद्ममान संबल बुद्धि, विवेक, क्षमा, ज्ञान, संतोष के अतुल बल का भी वर्णन किया जो सदगुरू कृपासे अन्द्र की बुराइयों को परास्त् कर भक्ति और मोक्ष का मार्ग प्रसस्तू करते है।

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