साहब देवीदास जी की समाधि द्वारा गुरूदत्त् दास साहब का महन्थ् के रूप में नामकरण करने के बाद फिर कुछ दिन तक पटीदार लोग थोडा शांत रहे, लेकिन पद और धन की लालच जिनके अन्द र व्याीप्तो हो गयी तो वे लोग ज्याोदा दिन तक शांत भी नही रह पाते है लोक लज्जाि के कारण भले ही कुछ दिन चुपचाप शांत रहें अत: फिर वही लडाई झगडा तूतू मैंमैं शुरू हो गयी, समर्थ साहब गुरदत्तद दास साहब ने पुन: एक बार प्रशासन की मदद ली और उन लोगों के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज करवा दी उस समय थाना इंचार्ज कोई मुसलमान था दूसरे ही दिन थाना प्रमुख जी सिपाहियों के साथ पुरवाधाम आ पहॅुचे, उस समय समर्थ साहब गुरूदत्तम दास साहब नित्यप पूजा अर्चना कर रहे थे। अत: थाना प्रमुख ने एक सिपाही को भेजकर दसरे लोगों को समर्थ साहब देवीदास के मन्दिर प्रांगण में इकठ्ठा होने के लिए बुलवाया और खुद भी मन्दिर प्रांगण में गये तब तक कुछ अन्यं ग्रामवासी भी वहा आ गये थाना प्रमुख ने ग्रामवासियों से भी मन्दिर और मन्दिर के महन्थव के बारे में पूछ ताछ की सबने अपने अपने तरीके से बताया हालांकि एक बात थाना प्रमुख समझ चुका था कि मन्दिर बहुत ही सत्येप्रद एवं चमत्कायरी है। थोडी देर मे सारे लोग पहुच गये समर्थ साहब गुरूदत्तय दास साहब भी पूजा करके रोज की तरह समाधि दर्शन एवं बन्दमगी बजाने मन्दिर आये और दर्शन बन्द गी किया। थाना प्रमुख ने सभी पक्षों एवं महन्थब पद के दावेदारो की बात सुनी तथा सबको समझाया किन्तुु कहते है कि कुछ लोग जो लोभ और मोहमाया से ग्रसित हो जाते हैं उन्हेन किसी की बात समझ में नही आती। अत: अन्तत में थाना प्रमुख ने गुस्सेै में आकर कहा कि जो जो लोग महन्थी बनना चाहते हैं उन्हे समाधि मे बन्द् कर दिया जाए, जिसके अन्दोर भक्ति एवं शक्ति तथा सामर्थ्यत होगी वही बिना दरवाजा खोले बाहर निकल आएगा उसी को महन्थ बनने के योग्यस समझा जायेगा। और इतना कहकर महन्थि पद के इच्छु्क सभी दावेदारों को समाधि के अन्द र बन्दब कर दिया गया और बाहर से ताला बन्दछ कर दिया गया। थोडी देर बाद समर्थ साहब गुरूदत्तग दास साहब हाथ में सुमिरनी लिए सत्ययनाम सुमिरन करते लोंगो को बाहर दिखाई दिये और कोई भी समाधि के बाहर न आ सका। काफी देर के बाद थाना प्रमुख ने ताला खोलकर अन्यि लोंगो को भी बाहर निकाला और कहा कि यही है तुम लोंगो की भक्ति, अरे भक्ति तो गुरूदत्तर दास जी की है जो दरवाजा में ताला बन्दा होते हुए भी बाहर निकलकर भजन कर रहे है वै ही सच्चेर भक्ती है। तुम लोग तो खाली विवाद कर सकते हो वाकी स्थारन और समाज से तुम्हाेरा कोई सरोकार नही है। वहॉ पर उपस्थित लोंगो ने समर्थ साहब देवीदास साहब और समर्थ गुरूदत्ता दास साहब की जय जयकार करने लगे और थाना प्रमुख भी समाधि को एवं गुरूदत्तर दास साहब को प्रणाम कर वहॉ से चले गये।
No comments:
Post a Comment