एक बार समर्थ साहब गुरूदत्तब दास साहब को किसी केश के सिलसिले में एक लोग की तरफ से गवाही देने के लिए डिप्टीस साहब के पास जाना पडा। समर्थ साहब हैदरगढ तहसील पहुचने से पहले एक बाग में अपने आदमियों के साथ विश्राम करने के लिए रूके थोडा आराम करके जब वहॉ से चलने लगे तो अपनी सुमिरनी (छोटी माला २७ दाने वाली) को एक पेड की डाली पर टांग दिया और सुमिरनी से कहा कि हमें तहसील गवाही देने कि लिए जाना है आपका कोर्ट कचहरी में जाना ठीक नही है अत: आप मेरे वापस आने तक यही विश्राम करे। इतना कहकर समर्थ साहब गुरूदत्त: दास साहब सुमिरनी को प्रणाम कर तहसील चले गये, थोडी देर बाद जब साहब गवाही देने के लिए डिप्टीन साहब के सामने हाजिर हुए तो डिप्टीद ने साहब को देखकर कहा साधू होकर भी यहॉ झूठ बोलने के लिए आ गया ढोंगी कहीका। समर्थ साहब तो हमेशा ही अजपा जाप मे तल्लीनन रहते थे समर्थ साहब सत्यथनाम सम्प्र दाय के महान अवधूत संत थे। डिप्टी की कुटिल बात (साधू होकर झूठ बोलने आ गया) बहुत बुरी लगी अब भला उस बेचारे डिप्टीी को क्यार पता कि सामने कौन खडा है समर्थ साहब के सामने डिप्टीच वाला रौब झाड बैठा साहब ने अपने इष्टस को याद किया और तुरन्तस एक दोहा पढ दिया।
दोहा इस प्रकार था : जगजीवन से अरज है, सुनौ बीर हनुमान।
जे साधू को झूठा कहै, तेहिकै ऐंठि दियो जबान।।
समर्थ साहब के उपरोक्तू दोहा पढते ही कुर्सी पर बैठे डिप्टी की गर्दन एक तरफ को लुढक गयी, जबान बाहर निकल आयी डिप्टीर बेचारे लुढक गये चारों तरफ तहसील में हाहाकार मच गया। तभी लोंगो ने समर्थ साहब से कहा सरकार इनकी जान अब आप ही बचा सकते है, साहब ने कहा इसने साधू का अपमान किया कटु बचन बोले इसीलिए हनुमान जी ने इनकी यह दशा की है अब इसमें मैं कुछ नहीं कर सकता हॅू। अगर आप लोग इनकी जान बचाना ही चाहते है तो इन्हेक फौरन कोटवा दरबार समर्थ सद्गुरू स्वाकमी जगजीवन के दरबार ले जाइए और अभरन कुण्डब में स्ना न कराकर समर्थ सरकार की समाधि का दर्शन कराइए और इनके लिए प्रार्थना करिये वे बडे दयालु है वे इनपर भी अवश्य् कृपा करेंगे। लोंगो ने तुरन्तव डिप्टीं साहब को अचेत अवस्थाु में गाडी में रखा औ जय जगजीवन जय सतनाम, अधम उधारन कोटवाधाम कहते हुए कोटवाधाम गये और जैसा साहब गुरूदत्तो दास साहब ने कहा था वैसा ही किया तब जाकर बडे बाबा की कृपा से डिप्टीर साहब की जान बची। कोटवाधाम से वापस आकर डिप्टी साहब पुरवाधाम गये और समर्थ साहब देवीदास की समाधि का दर्शन किया और समर्थ साहब गुरूदत्तध दास साहब से अपने कृत्यी के लिए बार बार क्षमा मांगी साहब ने तब उन्हेू यह कहकर क्षमा कर दिया कभी किसी संत का उपहास मत करना। डिप्टी साहब ने जीवन भर साधु सन्तोक की सेवा और उनका सम्माान किया।
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