कीरति समर्थ साहब गुरूदत्तू दास साहब की बॉसूपुर से अशरफपुर की यात्रा के दौरान (समय) आसमान से ओळे पडना और साहब गुरूदत्तस दास जी द्वारा भक्तोक की रक्षा होना। समर्थ साहब गुरूदत्त दास जी बडे ही मृदुल स्वबभाव के थे। अपने भक्तों् को सदाही प्रेम करते थे जो भक्ते दरबार दर्शन करने न जा पाते, साहब स्वतत: समय निकालकर भक्तोंत की दर्शन अभिलाषा पूर्ण करने के लिए भक्तों के गॉव घर जाकर उन्हेंर दर्शन देते और उनके दु:ख दारिद्र जैसी तमाम दैहिक, दैविक और भौतिक कष्टोंत का निवारण करते । एक बार समर्थ साहब गुरूदत्तर दास साहब श्री कोटवाधाम दर्शन करके बॉसूपुर में आकर भक्तोर को दर्शन दिया और दूसरे दिन अशरफपुर को जाने के लिए तैयार हुए। माघ का महीना कडाके की ठंढ उपर से मौसम कुछ ज्या दा ही खराब था। बारीश और ओले गिरने की संभावना प्रबल थी (ओले आसमानी पत्थुर) भक्तोंटने समर्थ साहब से आग्रह किया कि सरकार मौसम बहुत खराब है, बासूपुर से अशरफपुर के बीच की दूरी तो अधिक नही थी किन्तु रास्तेर में बरसात और ओले से बचने के लिए कोई जगह न थी कि अगर अचानक से बारिश या पत्थ र पडने लगे तो कही रूककर बचा जा सके अत: कल मौसम हो सकता है ईश्वतर की कृपा से अच्छाा हो जाए तो अशरफपुर चला जाएगा परन्तुम समर्थ साहब ने कहा कि समय काफी हो गया पुरवाधाम से निकले हुए और यहॉ तक आ गये है भक्तों का दर्शन मेला करके पुरवाधाम के लिए प्रस्थाेन किया जाए, इसलिए बडे बाबा का नाम लेके चल देना चाहिए। साहब के ऐसा कहने पर भक्तोंन ने कहा कि सरकार हम भी आपके साथ चलेंगे अत: दस पन्द्रअह भक्त भी साहब के साथ चल दिये बासूपुर गॉव से थोडी ही दूर सब लोग गये होंगे कि बादल जोर जोर से गरजने चमकने लगे तो भक्तोस ने कहा कि साहब लगता है बारिस होगी समर्थ साहब गुरूदत्तक दास साहब ने कहा कुछ नही अब चल दिये है तो अशरफपुर में ही रूकेंगे आगे जैसी बडे बाबा की इच्छाब जैसे ही भक्तोंि के साथ गांव के बाहर खेतों मे पहुचें बारिश शुरू हो गयी और बडे जोर से बिजली कडकी और बडे बडे पत्थहर ओेले पडने लगे लोग घबरा गये समर्थ साहब गुरूदत्तज दास साहब ने श्री समर्थ कोटवाधीश जगजीवन साहब को याद किया और एक दोहा पढा जो निम्नदलिखित है।
दोहा:- जगजीवन से अरज है सुनौ संत सिर ताज।
भक्तवन पर पाथर परै, तो अइहै कौने काज।।
कहते है कि उपरोक्तप दोहा पढते ही समर्थ स्वाौमी जगजीवन साहब की ऐसी कृपा हुई कि पगडन्डी के दोनों तरफ और भक्तोंर की टोली के आगे और पीछे चारों तरफ ओले पड रहे थे परन्तुे भक्तोक के उपर और साहब के उपर नतो पानी की एक भी बॅूद पड रही थी और न ही पत्थ र किसी को लगे। लगभग तीन कि.मी. के सफर में बॉसूपुर से अशरफपुर तक किसी भी भक्तों को कोई भी क्षति नही हुई। भक्त जय जगजीवन जय सतनाम अधम उधारन कोटवाधाम एवं समर्थ साहब गुरूदत्त दास साहब की जय जय के नारे लगाते हुए सकुशल अशरफपुर पहॅुच गये रात में साहब के साथ भजन सतसंग किया। दूसरे दिन साहब ने वहॉ से पुरवाधाम के लिए प्रस्थाभन किया।
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