卍 ऊँ देवीदास जू नमो नमः श्री सांवले नमो नमः| पुरवा अधिपति नमो नमः जय देवी दास जू नमो नमः|| 卍

Saturday, March 16, 2019

कीर्ति गाथा 15

       समर्थ साहब का बासूपुर के महादेव सिंह को पुत्र प्राप्ति का वरदान देना :- एक बार समर्थ साहब गुरूदत्तह दास साहब बडे बाबा के जन्मोदत्सैव में शामिल होने एवं समर्थ सदगुरू का दर्शन करने श्री कोटवाधाम गये थे। जन्मोमत्सोव का कार्यक्रम समाप्तर होने के बाद दरबार से विदा एवं सदगुरू का आर्शीवाद लेकर पुरवाधाम के लिए चले। हर बार की तरह इसबार भी रास्तेा में जो भी भक्तद प्रेमी के गांव घर जाकर दर्शन मेला करते हुए बॉसूपुर पधारे। साहब के आगमन की सूचना मिलते ही। समस्तद ग्राम वासी प्रसन्न  होकर जिसे भी पहले पता चल जाता कि समर्थ साहब के दर्शन के लिए दौढ पडता। रास्ते मे जो भी मिलता उसे बताकर और दूसरे लोगों को भी बताने को कहकर चला जाता। पूरे गांव मे सभी भक्त  इकठ्ठा हो जाते। सतसंग भजन कीर्तन होता, सबकी इच्छाे यही होती कि अबकी बार साहब हमारे घर पर रूके पर समया भाव के कारण समर्थ सरकार का सबके यहा रूकना संभव न होता किन्तुस भक्तम का मान रखने के लिए भतोंके   के घर तक पहुचते अवश्यज थे गॉव में एक सत्यमनामी भक्तख एवं महन्थ  श्री दत्त  जी रहते थे। तो ज्या दातर समर्थ साहब का आसन महन्था जी के यहॉ ही लगता। गांव के सभी भक्तत साहब का दर्शन व संगति पाकर धन्या हो जाते। उसी गांव मे महादेव सिंह नाम के एक ठाकुर रहते थे। महादेव सिंह का परिवार तो भक्ती एवं दीक्षित था परन्तुक महादेव सिंह खुद दीक्षित नही थे (यानी कि वे निगुण) थे कहने का अर्थ है कि उन्हों ने गुरूदीक्षा नहीं ली थी। महादेव सिंह के पिता दो भाई थे, जिसमें एक भाई ने (सिद्धस्था न कोटवाधाम) से शिवमन्त्रं लिया था। तो इस बार जब समर्थ गुरूदत्त  साहब बॉसूपुर आये महादेव सिंह ने साहब की सेवा करते हुए साहब से प्रार्थना कि सरकार इस बार हमारे घर पर भोजन प्रसाद ग्रहण करें, महन्थन श्री दत्त  जी ने भी निवेदन करते हुए महादेव सिंह के यहॉ भोजन ग्रहण करने का आग्रह किया समर्थ साहब तो अर्न्ततयामी थे। भक्त  का प्रेम और मनोभावना को समझकर स्वीसकृती दे दी । सुबह जब समर्थ साहब गुरूदत्त  दास जी महादेव के घर भोजन के लिए बैठे तो महादेव सिंह ने अपनी माता से पूछा कि अम्माज साहब के लिए दूध मे पूडी तोडकर डाल दों तो उन्होमने साहब से पूछा और जब साहबने इजाजत देदी तो महादेव सिंह पूडी तोडकर दूध में डालने लगें तो साहब की नजर उनकी कलाई पर पडी तो उनके हाथ में न तो सत्य नामी धागा था और न ही गले में कंठी था और कुछ भी न दिखा तो साहब ने कहा राम, राम, अरे ठकुराइन ये तो निगुणा है। इनको तुमने मन्त्र  दीक्षा क्यों  नही दिलाई। इतना सुनकर महादेव सिंह की माताजी रोने लगी और महादेव सिंह भी उदास हो गये। महादेव की माताजी ने रोते हुए बताया कि साहब इनके पिताजी दो भाई थे। एक आपके यहॉ से भक्तर थे और एक शिव मंत्र लिए थे। और अब ये महादेव अपने पिता के अकेले पुत्र है अत: मारे डर के हमने इन्हेऔ मन्त्रर दीक्षा नही दिलाया कि अगर इनको आपके यहॉ से मन्त्र  दिला दे तो कोटवा वाले बाबा नाराज न हो जाए और अगर कोटवा से मंत्र दिला दॅू तो कहीं आप लोग न नाराज हों जाए। और मेरे पुत्र महादेव के कोई औलाद है नहीं (बच्चेग पैदा तो होते हैं किन्तुर एक या दो महिने के अन्दमर ही खत्मह हो जाते है। समर्थ साहब गुरूदत्तो साहब ने कहा कि कोई बात नही आप इनकों कही से मन्त्रम दीक्षा दिलवा दों कोई भी नाराज नही होगा इनका गुरूमुख होना अतिआवश्यमक है और आप सबके लिए मंगलकारी साहब ने कहा कि
प्रातहि निगणुा न मिलै पापी मिलै हजार।
एक निगुडा के शीश पर कोटि पापिन का भार।।
बडे बाबा की कृपा से आपका बंश भी चलेगा और आप दोनों ही स्थालन से लडको को मंत्र दिलाना। तभी महादेव सिंह की माता जी ने कहा कि साहब आप ही महादेव को धागा बाधकर मन्त्र  दे दीजिए। समर्थ साहब गुरूदत्तह दास साहब ने महादेव सिंह को मन्त्र दीक्षा देकर अपना शिष्यभ बना लिए। कलान्तगर में महादेव सिंह के जुडवा लडके पैदा हुए जिनका नाम रखा गया (बडकउ सिंह छोटकउ सिंह) बडकउ सिंह को शिव मन्त्रक दिलाया गया और छोटकउ सिंह पुरवाधाम से सत्यंनाम मंत्र लिए, करीब बीस साल की अवस्थार मे बडकउ सिंह हैजा की बीमारी के चलते खत्मं हो गये थे। बाद मे समर्थ साहब के वरदान स्व रूप (आप दोनो स्थाीन से बच्चों  को मन्त्रब दिलाना) बाइस तेइस साल बाद महादेव सिंह को फिर एक पुत्र हुआ जिसका नाम विजय बहादुर सिंह रखा गया और उन्होमनें कोटवा धाम से शिवमंत्र लिया। आज भी समर्थ साहब के आर्शीवचन के फल स्व रूप यह परिवार सत्य नाम सम्प्रादाय जुडा हुआ है। और समर्थ सरकार की एवं सच्चे  दरबार की कृपा पात्र है।

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