साहब गुरूदत्तउ दास साहब द्वारा गरीब भक्तध रामअधीन (जैत बनी निवासी) को धन धान्य. से पूर्ण होने का वरदान देना सतनाम समप्रदाय में गुरू और शिष्यर के संबधो को सर्वोपरि स्थाकन दिया गया है ये विधान कही भी और नही मिलता समर्थ साहब ने गुरू शिष्यस के परंपरा मे निर्धारित किया जिस तरह से शिष्यी भक्तत चलकर अपने दर्शनार्थ गुरूद्वारे आते है उसी तरह गुरू भी भक्तोज के घर जाकर उन्हेक दर्शन दे और उनकी दैहिक दैविक भौतिक सभी प्रकार के कष्टोंभ का निवारण करे समर्थ साहब गुरूदत्तद दास जी ने अपने ग्रंथ दोहावली में लिखा है कि
चारि मास चेला चलै आठ मास गुरू देउ ।
गुरूदत्त दास की बात का बिरला समुझे केउ।।
सतनाम समप्रदाय के सभी अनुयायी समर्थ स्वाुमी जगजीवन साहब का जन्म उत्स व प्रतिवर्ष गुरू पर्व के रूप मे मनाते है तथा दूर दूर से दर्शन के लिए दर्शन करने कोटवा दरबार मे आते है।
एक बार समर्थ साहब गुरूदत्तै दास गुरू पर्व (जन्म सप्तरमी के पर्व पर)
एक बार समर्थ साहब गुरूदत्तै दास गुरू पर्व (जन्म सप्तरमी के पर्व पर)
दर्शनार्थ कोटवाधाम गये थे वहॉ से लौटते समय सोचा की चलो रास्तेे में जैतबनी रामअधीन से भी दर्शन मिलन करते चले अत: समर्थ साहब गुरूदत्तद दास साहब जैतबनी आ गये जो (तहसील रामसनेही घाट मे भिटरिया चौराहा से एक कोस की दूरी पर हैदर गढ रोड पर स्थिभत है साहब के साथ मे दो चार लोग और भी थे साहब रामअधीन जी के दरवाजे पर जाकर ठहरे रामअधीन ने जब साहब को देखा तो दौडकर साहब के सामने लेटकर साष्टांरग प्रणाम किया और साहब को आदरपूर्वक बैठाया चरण छूकर चरणोदक लिया फिर घर के अन्दगर कमरे मे जाकर देखा एक मटकी में आधा किलो गुड रखा हुआ था। जाकर साहब को दिया साहब ने वही गुड भक्तों को भी दिया और खुद भी खाकर पानी पिया और बाकी बचा गुड रामअधीन जी को देकर कहा की इसे लेजाकर वही रख दो फिर काम आयेगा रामअधीन जी ने वैसा ही किया धीरे धीरे शाम होने को आ गयी रामअधीन जी ने सोचा घर में खाने के लिए कुछ भी नही है तो उन्होकने दुसरे किसी के घर कुछ मांगकर लाने के लिए चले तो समर्थ साहब गुरूदत्तह दास साहब जी ने रामअधीन को रोक लिया और कहा की तुम्हेे कही जाने की जरूरत नही है किसी के यहा से कुछ मांगकर लाओगे तो लोग एक ना एक दिन यह बात अवश्य कहेंगे की तुम्हासरे गुरू आये थे तो हमारे यहॉ से ले गये थे भगवान ने तुम्हा रे घर मे जो दिया है उसी का प्रसाद बनेगा और सब लोग वही ग्रहण करेंगें अब बेचारे रामअधीन और परेशान हो गये लेकिन साहब की बात मानकर रूक गये और घर में गये तो आधा किलो आटा रखा था। उसी से भौरी (बाटी) बनायी और गुड के साथ साहब को खाने के लिए दिया साहब ने कहा पहले सभी भक्तोा को दो और हम सब साथ मे प्रसाद लेंगे रामअधीन जी ने वैसा ही किया सब ने भौरी और गुड खाया सबको बडा आनन्दा आया सबका पेट भर गया फिर थोडी भौरी बच गयी। सुबह साहब ने वहॉ से चलने की इच्छा् जाहिर की और विदा लेकर चलने लगे तो रामअधीन जी की आखों से ऑसू आ गये और अपने मन में सोचा कि हमारे पास आज गुरूजी को विदाई में देने के लिए कुछ भी नहीं है समर्थ साहब गुरूदत्तजदास साहब रामअधीन जी के मनो भावों समझ गये और कहा कि तुम्हाथरा प्रेम और भक्ति पूर्ण सेवा ही हमारी विदाई की गुरू दक्षिणा है। और रामअधीन जी से सबके सामने कह दिया कि
‘यह बरदान खुशी से दीन ।
राम अधीन का अनजहा (अन्न वाला) कीन’।।
इतना कहकर समर्थ साहब वहॉ से विदा लेकर पुरवाधाम के लिए प्रस्थाीन किया। रामअधीन जी जब साहब को विदा कर वापस घर आये वो जिस मटके में हाथ डालते वह मटका अनाज से भरा मिलता। उसी साल से रामअधीन के खेतों में खूब अनाज पैदा होने लगा। उनकी गरीबी दूर हो गयी तथा उनका घर धन धान्ये से भर गया और धीरे धीरे रामअधीन बहुत धनवान हो गेयें।
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