समर्थ साहब गुरूदत्त दास जी द्वारा आयोध्याि जी मे श्री हनुमान जी के मुर्ती को अपने हाथों से लड्डु खिलाना।
एक बार समर्थ साहब गुरूदत्त् दास जी अयोध्या् दर्शन करने गये सरयू के पावन जल में स्नाबन कर भगवान श्री नागेश्वटर नाथ महादेव का दर्शन किया एंव पूजा अर्चना के लिये श्री हनुमान जी के दर्शन करने हनुमान गढी गये दुकान से प्रसाद और पुष्पल लेकर बडे ही भक्ति एवं श्रद्धा भाव से हनुमान गढी की सीढियॉ चढने लगे जब आप उपर पहुंचे तो एक लोग ने कहा अरे देखो पहले खडाउं पहन कर अंदर हनुमान जी के दरबार में आ गये और इतना कहकर पुजारी से शिकायत भी कर दी हनुमान गढी के पुजारी जी ने बडे गुस्सेह से समर्थ साहब से कहा की तुमको मालुम नही पडता की यह दरबार है यहा खडाउं चट्टी इत्या दि नही पहन कर आते है चलो निकलो यहा से जब समर्थ साहब गुरूदत्त साहब ने कहा की अरे भाइ मैं हनुमान जी को लड्डु खिलाने आया हुं और जल्दीच जल्दीत मे खडाउं उतारना भूल गया हुं अब अगर मै नीचे खडाउं उतारने जाउगां और वापस आउगां तब तो काफी देर हो जायेगी हनुमान जी का दर्शन करने में भी बिलंब हो जायेगा तब पुजारी और क्रोधित हो गये और बोलें देखो भाइयों ये ढोंगी बाबा हनुमान जी को खडाउं पहनकर लड्डु खिलाने आये है हम लोग रात दिन हनुमान जी की सेवा करते है पूजा अर्चना करते है आज तक हनुमान जी ने लड्डु नही खाया और ये हनुमान जी को लड्डु खिलायगें इनको यहा से बाहर निकालों पुजारी जी के इतना कहते ही दो एक लोंगो ने समर्थ साहब को वहॉ से जबरन भगा दिया न तो उनका लाया हुआ प्रसाद चाढाया और न ही उन्हे दर्शन करने दिया। समर्थ साहब को बडा दुख हुआ और आप पिछले दरवाजे से (जहॉ लोग दर्शन करके बाहर निकलते है) निकलकर एक तरफ बैठकर भजन करने लगे और उधर जैसे ही समर्थ साहब वहॉ से निकले हनुमान गढी मे जहॉ हनुमान जी की मूर्ती है वह दरवाजा अपने आप ही बन्दे हो गया पहले तो कोई कुछ समझ नही पाया फिर पुजारी लोगों ने दरवाजा खोलने की कोशीश की लेकीन दरवाजा न खुला कई लोगो ने मिलकर जोर लगाकर देख लिया लेकिन दरवाजा खुला ही नही लोग आपस मे चर्चा करने लगे की आखिर दरवाजा अपने आप बंद कैसे हुआ और खुल क्योग नही रहा सब लोग आश्चरर्यचकित थे भीड बढती जा रही थी लेकीन हनुमान जी का दर्शन किसी को नही मिल पा रहा था बात हनुमान गढी के महन्तन तक पहॅुची महन्तक जी आये और उन्हो ने पूछा आखिर क्याा बात है साफ साफ बताओ तब कुछ लोगों ने बाताया की एक महात्मा जी खडाउं पहनकर और कम्बफल ओढकर प्रसाद चढाने आये थे और यहा से पुजारी जी ने उनको बिना प्रसाद चढाए अपमानित शब्दय कहकर यहॉ से निकलवा दिया तब से ये दरवाजा बन्द् है और खुल नही रहा तब महन्तद जी ने पुजारी से पुछा तब पुजारी ने सारी बात बताई और अपनी गलती को स्वीीकारा तब महन्तय जी ने कहा जो जो लोंगो ने उन महात्मान जी को देखा है सब लोंग उनको ढुढों और उनको मनाकर आदर पूर्वक यहा लेकर आओ हर तरफ एक ही चर्चा थी की कोइ माहत्मा जो हनुमान जी का सच्चार भक्तक था उसी के अनादर से रूष्टु होकर अब हनुमान जी किसी को दर्शन नही दे रहे उधर जब लोग पीछे की तरफ लोग समर्थ साहब को खोजने गये तो देखा की साहब आसन लगाए ध्याेन मुद्रा में प्रभु का नाम स्मनरण कर रहें है तो लोगों ने उनके पैर पकड लिए और रोकर प्रार्थना करने लगें की महाराज जैसे ही आप मंदिर से बाहर निकले है तभी से हनुमान जी के मंदिर का दरवाजा बंद हो गया और तमाम कोशिश के बावजूद भी दरवाजा खुल नही रहा है। सभी दर्शनार्थी भक्तर परेशान है। अत: आप जल्दील चलिए नही तो कोई भी हनुमान जी का दर्शन नही कर पायेगा। तब समर्थ साहब ने कहा की चलो लेकिन हनुमान जी का इतने लड्डू से कुछ नही होगा। हनुमान जी के लिए और ज्यािदा लड्डू लेना पडेगा तब पुजारी और महन्तन जी भी साहब के पास आ गऐ पुजारी ने समर्थ साहब से क्षमा मांगी और रोने लगे बोले सरकार मै अज्ञान आपको समझ नही पाया आप मुझे क्षमा कर दिजीए। महन्त जी ने कहा सरकार सब भक्त परेशान हैं जब तक आप नही चलेगें तब तक कोई भी हनुमान जी का दर्शन न कर सकेगा महन्ता जी पुजारी जी बोले जाओ दुकान से एक झबरा (लकडी की बनी बडी टोकरी जिसमे ५० किलो से ज्यालदा लड्डू आता है) लड्डू लेकर आओ और दुकान से झबरा भर कर लड्डू आया आगे आगे समर्थ साहब गुरूदत्तक दास साहब उनके पिछे महन्त जी और लड्डू लिए पुजारी जी सब लोग मंदिर में आये समर्थ साहब गुरूदत्तह साहब ने श्री हनुमान जी से हाथ जोडकर प्रार्थना किया और कहा प्रभु हम सभी भक्त आपके के दर्शन को आतुर है आप कृपा करके दर्शन दे और निम्नरलिखित पद पढा।...
‘सुनो हनुमान तुम्हेप मैं पुकार करौं मोरी सुधी लेइहौं रामदूत कब आई कै।
करम कराल कलि कालहू सतावै मोहिं बूझिये न दु:खी दास तेरो हौं काहाय कै।
मोरिमति थोर गुण कहॉ लौ बखान करों गावैं वेद चारि यश कीरति बढाए कै
जनगुरू दत्त के गुनाह मेंटि पवन सुत, देहु रामभक्ति जन जानि अपनाय कै’।
और समर्थ साहब ने जैसे ही दरवाजे पर हाथ रखा दरवाजा खुल गया और लड्डू की बडी टोकरी अन्दनर रख दी गयी और पुन: दरवाजा अपने आप बन्दि हो गया थोडी देर बाद दरवाजा पुन: अपने आप खुल गया और टोकरी मे १० १५ लड्डू प्रसाद के रूप मे बचे थे हनुमान जी बाकी सारा लड्डू खा गये समर्थ साहब ने हनुमान जी को प्रणाम किया भक्तोंा और दशानार्थियो में खुशी की लहर दौड गयी हनुमान जी की जय हो समर्थ साहब गुरूदत्तो दास जी के नारों से वातावरण गुंज उठा चारों तरफ जय जयकार होने लगी समर्थ साहब ने हनुमान जी को प्रणाम किया और सबसे विदा लेकर चलने लगे तो महसन्ता जी समर्थ साहब जी का परिचय जान कर अति प्रसन्नकता व्यहक्ता की समर्थ साहब की असीम भक्ति की प्रशंसा करके आग्रह किया कि हर पूर्णमासी को तपोस्थाली (पूरवाधाम) को हनुमान जी का प्रसाद हनुमान गढी से भेज दिया जायेगा आप उसे स्वीेकार करे तब समर्थ साहब ने कहा यदि आप प्रसाद भेजना ही चाहते है तो श्री कोटवाधाम भेजवा दिजिए वहॅा हमारा गुरूद्वारा है ईश्वार भक्ति मुझे गुरूकृपा से ही प्राप्तह हुयी है तब से हर पूर्णमासी को श्री हनुमान जी का प्रसाद अयोध्याे से श्री कोटवाधाम को ले जाने (पहुचाने के परंपरा चली) जो सदियों तक चली।
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