समर्थ साहब अनूपदास जी की खंझडी (एक बांधयन्त्रद) की मधुर आवाज सुनकर भूत प्रेतों का इकठ्ठा हो जाना एवं समर्थ साहब के साथ भजन कीर्तन करना: -
समर्थ साहब अनूपदास जी की भक्ति सर्वथा वन्देनीय है समर्थ साहब अनूपदास जी आठों याम आजपा जाप किया करते थे समर्थ साहब अनूपदास जी के बारे समर्थ साहब गुरूदत्त दास जी ने अपने ग्रथ दोहावली में लिखा है कि
दोहा :- सतगुरू नाम अनूप का बडा अहे प्रताप।
जिनकी कृपा कटाक्षते अजपा आपुहिं आप
समर्थ साहब अनूपदास के समक्ष साहब देवीदास जी के द्वारा अखंड भक्ति का वरदान प्राप्ता हुआ था। इतना ही नही समर्थ साहब देवीदास जी समर्थ साहब अनूपदास जी से इतना प्रसन्नह हुए उनके भक्ति भाव को देखकर ही उन्होरनें समर्थ साहब अनूपदास जी को अपना पूर्ण प्रतिरूप ही दे दिया। कहते हैं कि भक्ति और भजन दोनों ही सतगुरू कृपा से सुलभ है समर्थ साहब अनूपदास जी शाम के समय घर और गांव से बाहर निकल जाते और नर्दाताल (ये वही झील है जहॉ आज से हजारों साल पहले देवर्षि नारद जी ने तपस्या की थी) जिसे आज नर्दाताल के नाम से जाना जाता है। के किनारे बैठे समर्थ अनूपदास साहब खंझडी बजाकर भजन गाते रहते थे ऐसा सुना जाता है जब समर्थ साहब अनूपदास जी की खंझडी बजाकर भजन गाना सुरू करते थे तो आस पास के जितने भूत प्रेत जिन्न जिन्ना त समर्थ साहब अनूप दास जी के खंझडी की आवाज सुनते ही सरकार का भजन सुनने के लिए इकठ्ठा हो जाते थे और समर्थ साहब भजन सुनाते थे। एक बार एक प्रेत ने समर्थ साहब अनूपदास जी से प्रार्थना किया और कहा की साहब आप हमे भी अपने साथ अपने घर ले चलिए। मै आपका सारा कार्य करूंगा और भक्तो और संतो का दर्शन भी करता रहूंगा और दरबार में भजन भी रोज सुनने को मिलेगा समर्थ साहब अनूपदास जी ने कहा की तुम्हाारा वहॉ चलना ठीक नही होगा लोग तुम्हेह वहा देखकर डर जायेंगे तुम यही रहो तो उस प्रेत ने कहा की साधारण मनुष्य के रूप में ही रहुंगा। मेरी वजह से किसी को कोई भी तकलीफ नही होगी। आखिरकार तमाम मिन्नात के बाद समर्थ साहब ने उसको साथ चलने की इजाजत देदी। उस प्रेत ने साहब से एक और प्रार्थना और कि साहब घर में सबसे बता देना मुझसे कभी कोई मेरे बारे में न पुछे नही तो मै झूठ बोल नही पाउंगा और सच बोलने पर वह डर भी सकता हैा अत: कोई कभी मेरे बारे में पुछेगा तो मैं बिना किसी से कुछ कहे वापस अपनी दुनिया में आ जाउगा साहब ने कहा ठीक है जब तक ईश्वगर तुम्हेक दरबार में रखना चाहेगें तुमसे कोई कुछ न पुछेगा आगे साहब की इच्छा इस तरह वह प्रेत समर्थ श्री अनूपदास जी के साथ आ गया। दरबार में कई वर्षो तक सेवा की एक दिन मौसम खराब था। और साहब के घर में रोज एक महिला गृह कार्य के लिए पडोस के गांव से मज्झू पुर से आती थी उस दिन उनकों वापस घर भेजने वाला कोई नही था। बेचारी अकेले घर जाने से डरती थी और घर जाने के लिए रोज से आज कुछ ज्या दा ही देर हो गयी थी। जब दरवाजे पर निकली तो वही भक्त प्रेत उनकों मिल गये उन महिला जी ने कहा भैया तुम मेरे गांव तक भेज आओ अत: वह प्रेत उन महिला के साथ मज्झूहपुर तक छोडने गया और रास्तेज में बाते भी करते रहे लेकिन जब घर आ गया तो महिला जी बोली अच्छा भैया चलों कुछ पानी वानी पी लो फिर दरबार चले जाना। तो उस प्रेत ने कहा आप मुझे जाने दो मुझे प्यानस नही लगी है। तो उस महिला जी ने सरल स्व भाव में ही पुछ लिया की भैया तुम्हापरा नाम क्याह है और तुम रहते कहा हों तभी उस प्रेत ने कहा आपको मुझसे ये बात नही पुछनी चाहिए थी और मै आपको कुछ बता नही सकता और उनको बिना कुछ कहे वहॉ से चल दिया। वहीं से साहब को बन्दरगी की और कहा साहब मुझे माफ करना मैं बिना बताए, बिना आप से मिले जा रहा हॅू शायद मुझे इतने दिन ही दरबार की सेवा का सौभाग्य, प्राप्ते था।
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