卍 ऊँ देवीदास जू नमो नमः श्री सांवले नमो नमः| पुरवा अधिपति नमो नमः जय देवी दास जू नमो नमः|| 卍

Saturday, March 16, 2019

कीर्ति गाथा 28

                 एक बार बॉसूपुर गॉव में समर्थ स्वा मी जगजीवन साहब द्वारा सूचित श्री अधविनास महापुराण ग्रन्थब की कथा का साप्ता्हिक पाठ हो रहा था। इस पावन सत्य नामी ब्रम्ह  यज्ञ में भाग लेने के लिए समर्थ सद्गुरू श्री शिवशरण दास जी बॉसुपुर पधारेा भक्तों की इच्छा  थी कि साहब सपरिवार एक दो दिन तक वहॉ पर उपस्थित रहें। उस समय समर्थ साहब का स्वा स्थ य ठीक न होने की वजह से साहब ज्यािदा समय पहले न आ सके, किन्तुक भक्तोंय की इच्छा  पूर्ति हेतु परिवार के अन्य  सदस्यों  के साथ गुरूमाता बॉसुपुर पधारी। भक्त् लोग गुरू परिवार का दर्शन पाकर आनन्दर विभोर हो गये। बस एक अभिलाषा और बाकी थी कि अगर ऐसे पावन अवसर पर सदगुरू के भी दर्शन हो जाते तो यज्ञ सफल होने के साथ सबकी मनोकामना भी पूर्ण हो जाती। और जितना भक्त  लोग अपने सदगुरू के दर्शन के लिए व्याणकुल थे, उतना ही वहॉ साहब भी। आखिरकार साहब ने पुरवाधाम से बॉसुपुर के लिए प्रस्थाजन किया और जब साहेब बॉसुपुर पहॅुचे तो भक्तों  के आनन्द  की कोई सीमा न रही। पूरे गॉव के भक्तह साहब के दर्शन के लिए दौड पडे। आस पास के गॉव के लोंगों को पता चला तो वे भी साहब के दर्शन को आने लगे। रात के करीब नौ साढे नौ बज चुके थे। ठंडी अधिक होने की वजह से साहब अलाव के पास ही बैठे थे वही अलाव के पास ही साहब ने दवा खाकर आराम करने के लिए जाने ही वाले थे कि तभी बॉसुपुर के ही एक भक्ते बासुदेव सिंह जो शायद किसी काम से बाहर गये थे वापस आने पर घर वालों ने बताया कि पुरवाधाम से सहब आये हुऐ हैा तो वह भी साहब के दर्शन के लिए गये। साहब को बन्द गी बजाई और साहब का आर्शिवाद लेकर बैठ गये।साहब ने हाल चाल पूछा और कहा कि अच्छा  मास्टदर साहब अब आराम करने की इच्छा। है आप बैठो मेरी तबियत थोडा कम ठीक हैा ऐसा कहकर साहब लेटने चले गये और इधर मास्टबर वासुदेव सिंह बैठे बैठे सोच रहे थे कि मैं तो अपने मन में एैसा सोचकर आया था कि मै तो जल्दीट से पुरवा दरबार जा नही पाता हॅू। आज साहब आये है तो चलकर साहब के दर्शन भी करूंगा और साहब के श्रीमूख से कुछ ज्ञान कि बातें भी सूनुगां परन्तुद जैसे ही मै आया साहब सोने के लिए चले गये बसुदेव सिंह यही सब सोचते रहें और फिर सोचा कि अब जब साहब चले ही गये तो मैं ही यहॉ अकेला बैठकर क्याे करूंगा चलो मै भी चला जाता हॅू सुबह पुन: वापस आ जाऊंगा वसुदेव सिंह ऐसा सोच ही रहे थे कि तभी साहब कम्बाल ओढकर वापस आये और अलाव के पास बैठ गये। और बोले कि मुझे लगा चलों थोडी देर मास्टरर जी के साथ बैठकर बात चीत करें नही तो मास्टमर वासुदेव यही सोचेगें मै तो साहब के लिए यहॉ आया था। और मेरे आते ही साहब विश्राम करने चले गये। वासुदेव सिंह अपने मन कि बात साहब के मुख से सुन कर आश्चरर्य चकित हो गये। और इतना ही कह पायें कि साहब आप तो अर्न्तआयामी है। और करीब एक घण्टेत तक बैठकर बात चीत करते रहें। अन्तस मे वासुदेव सिंह ने खुद कहा कि साहब अब आप आराम कीजीये और हमे भी आर्शिवाद एंव इजाजत दीजीये।

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