🚩🌷श्री गणेशाय नमः🌷🚩
अथ नारी चालीसा
दोहा:-
श्री गणेश वन्दन करूँ,गुरु पद रज सिर धारि।
ज्ञान भक्ति वर देहु मोहिं, अवगुन सकल नेवारि।।
नारी जग की ज्योति है, चारों जुग परमान।
आदिशक्ति सीता सती,अनुसूया मातु महान।।
चौपाई:-प्रथमहिं सतगुरु मातु मनावौं।-1
जासु कृपा निर्मल मति पावौं।।
बन्दउँ नारि चारि युग केरी।
देहु मातु मोहिं बुद्धि घनेरी।।-2
नारी आहिं सृस्टि कै कर्ता।
सकल जगत की पालन कर्ता।।-3
जब न होत जग जनम नारि को।
मातृ रूप करि सकत धारि को।।-4
नारि बिना नर जन्म न होई।
कोटि उपाय करै भल कोई।।-5
नारि बिना नर अहैं अधूरे।
जो सपनेहुँ होइ सकत न पूरे-6
नारी शक्ति केर अवतारा।
सोइ जानै जो करइ विचारा।।-7
बन्दउँ जगत नारि के रूपा।
एक से अधिक हैं एक अनूपा।।-8
दुर्गा काली चंडी रानी।
नारि रूप जगदम्ब भवानी।।-9
लक्ष्मी गौरि शारदा माता।
ये सब नारि रूप विख्याता।।-10
माता सुता बहन अरु नारी।
चारि रूप हैं अति सुखकारी।।-11
प्रथम रूप कन्या कै आही।
जाहि विलोकि सबै हर्षाहीं।-12
दूसर रूप बहिन बनि आवैं।
भाइन के मन अतिसय भावैं।।-13
तीसर रूप अनूप नारि कै।
बनि बनिता सुख परमधाम कै।।-14
जाकर नारि पतिव्रता होई।
कालहु सन्मुख आवै न कोई।।-15
चौथ रूप सब महँ अति पावन।
सबके हृदय बसै मनभावन।।-16
कहै जाहि माता जग सारा।
भई जासे यह सृष्टि पसारा।।-17
बिना मातु कोउ केहि विधि जनई।
केहि विधि लख चौरासी तरई।।-18
बिना नारि सूना संसारा।।
कहत अहउँ निज मति अनुसारा।।-19
नारी होत शक्ति कै रूपा।
जिनके गुण अति अकथ अनूपा।।-20
धन्य नारि प्रगटी जग आई।
जिनकै कहँ लगि करौं बड़ाई।।-21
नारि के रूप अहैं जग जेते।
बरनि को सकै कहाँ कवि केते।।-22
नारी सकल गुणन की खानी।
नारि शक्ति नहिं जाय बखानी।।-23
ममता की मूरति है नारी।
तासे है लागत अति प्यारी।।-24
नारि धर्म कै सहज सुभाऊ।
सपनेहुँ दुःख देहिं नहि काहू।।-25
दाया छमा शील संतोषा।
ये नारी के चरित विशेषा।।-26
नारि से होय जगत की रचना।
यह मन मूढ़ है मानत कस ना।।-27
नारी सकल जगत आधारा।
सब अपने मन करहु विचारा।।-28
चरित नारि के अमित अपारा।
सो तौ आज परा मंझधारा।।-29
हैं कछु अधम आज अस भाई।
कन्या जन्म न तिन्हहि सोहाई।।-30
कन्या भ्रूण हत्या करवावें।
करि कुकृत्य अति पाप कमावै।।-31
जब कन्या कै जन्म न होई।
जग विस्तार कवन विधि होई।।-32
आज की कन्या कल की नारी।
आगे चलि बनिहैं महतारी।।-33
कन्या जन्म जौ न ह्वै पाई।
मानव जाति लुप्त ह्वै जाई।।-34
सब मिलि कन्या लेहु बचाई।
यहिमा है सबका हित भाई।।-35
विनती सुनहु मातु जगदम्बा।
मातु मोरि नहिं करहु विलम्बा।।-36
आतुर धाय मातु तुम आओ।
पापिन को तुम राह दिखाओ।-37
बेबस भई आज की नारी।
मातु आय तुम लेहु उबारी।।-38
जेहि घर नारि मान नहिं होई।
वह घर सुखित कवन विधि होई।।-39
जेहि घर होय नारि का आदर।
तेहि घर छलकत सुख की गागर।।-40
दोहा:-नारी से कन्या भई, कन्या से भई नारि।
कन्यावध अब न करौ,विनती सुनौ हमारि।।
और दान सब दान है, कन्यादान महादान।
कन्यादान जो करत हैं, तेहि समान नहि आन।
जे सन्मानै नारि का,तिन का परम अनंद।
कहत अधम जयबख्श अस,तेहि द्रवहिं सच्चिदानंद।।
यह नारी चालिसा नित,पढ़ै सुनै जो कोय।
नारि के प्रति आदर बढ़ै, सकल भाँति सुख होय।।।
No comments:
Post a Comment