तेज नाम सुमिरन और सिद्धियों के बारे में जितना ही कहा जाए वह सूर्य को दीपक दिखाने के ही बराबर होगा आपका जन्म बाराबंकी जिले में लक्ष्मणगढ़ नामक ग्राम में संवत 1735 भाद्रपद कृष्ण अष्टमी दिन मंगलवार को हुआ था आपके जन्म के विषय में रोचक कथा यह है कि पिता श्री भवानी सिंह जी गौरी शंकर के अनन्य भक्त थे लक्ष्मणगढ़ के समीप ही पांडव कालीन निर्मित गौरी शंकर का एक प्राचीन मंदिर है और ऐसा कहा जाता है कि आपके माता-पिता ने 12 वर्षों तक गौरी शंकर की कठिन आराधना की एवं गौरी शंकर के वरदान स्वरुप ही साहब देवी दास का जन्म हुआ तत्कालीन समाज में विद्यालयी शिक्षा का अधिक चलन ना था परंतु आपने स्वाध्याय से हिंदी संस्कृत उर्दू अरबी आदि का अच्छा ज्ञान प्राप्त किया जो आपके साहित्य में भी देखने को मिलती है आप इतने मेधावी थे कि दोनों हाथों से दो विभिन्न विषयों पर एक ही समय में साहित्य रचना करने में समर्थ थे आपने समर्थ साहब जगजीवन दास जी महाराज से मंत्र दीक्षा ग्रहण कर बहुत दिनों तक कोटवा में रहकर गुरु सेवा व आराधन किया तदुपरांत समर्थ साईं के कहने पर आप घर चले आए परंतु पुरवा ग्राम के नारदीय झील (जो अब नर्दा ताल के नाम से जाना जाता है कहते हैं देवर्षि नारद ने यही तपस्या की थी) का वातावरण आपको ध्यान सुमिरन के लिए उपयुक्त लगा इसी झील के नजदीक आपने छुहरिया पेड़ के नीचे कुटिया चबूतरा बना कर कठोर तप किया यह वृक्ष आज भी मौजूद है आप के चार पुत्र हुए( 1)श्री साहेब राम प्रसाद दास(2) श्री साहेब नीलाम्बर दास (3)श्री साहेब राम निवाज दास(4) श्री समर्थ साहेब अनूप दास ||
आप की साहित्यिक रचनाओं में सुख सनाथ, गुरु चरन , विनोद मंगल ,शब्द सागर, नारद ज्ञान ,दीपक समाज, दोहावली, भ्रम विनाश ,भ्रमरगीत, चरण ध्यान ,ज्ञान ऐना ,भक्त- मंगल ,ककहरा नामा ,काजी नामा ,परवाना प्रतीत, आदि महा ग्रंथ हैं ज्यादातर ग्रंथ सत्य सुधा प्रकाशन रायबरेली से प्रकाशित हैं सतनामी ग्रंथों के प्रकाशन में सत्य सुधा प्रकाशन का अभूतपूर्व सहयोग रहा है ऐसे कल्याणकारी सहयोग हेतु समस्त सतनामी भक्त समाज आपकी (सत्य सुधा प्रकाशन की) सदैव ही मुक्त कंठ से सराहना करते हैं आप के प्रसिद्ध सिद्ध शिष्यों में (1) श्री महंत रामसेवक दास हरचंदपुर बाराबंकी(2) साध्वी साहेब सोनादासी (3) साहेब निहालचंद राय (4)साहेब गिरवर दास आदि प्रमुख थे इसके अतिरिक्त (1)साहेब दिलबर दास(2)साहेब नंदू दास (3) साहेब छोटे दास (4) साहेब भाना दास जैसे सिद्ध संतों का वर्णन भी भक्ति विनोद नामक ग्रंथ में मिलता है आप 135 वर्ष की अवस्था में विक्रमी संवत अट्ठारह सौ सत्तर (1870)भाद्रपद अष्टमी को सतलोक लीन हुए परंतु आज भी पुरवा धाम के समर्थ साहब देवीदास का स्मरण मात्र करने से मनुष्य सभी दुखों से मुक्त हो जाता है पुरवा धाम में प्रत्येक पूर्णमासी को मेला लगता है एवं प्रत्येक मंगलवार को भी अधिक भीड़ देखने को मिलती है किंतु वर्ष में 3 बड़े मेलों का आयोजन होता है जो रक्षाबंधन कार्तिक पूर्णिमा एवं माघ जन्म सप्तमी को पड़ता है पुरवा धाम लखनऊ से लगभग 40 किलोमीटर दूर हैदर गढ़ बछराएं और निगोहा के बीच में नगराम से 5 किलोमीटर पूर्व में स्थित है सतनाम संप्रदाय की अनंत कीर्तियों व यश गाथा को संकलित करना संभवत: बूते से बाहर की बात है तथापि कुछ कथाये संकलित करने का प्रयास किया गया है आशा है पुरवा धाम के सभी भक्त लाभान्वित होंगे||
सादर बंदगी